नई दिल्लीः सीबीआई की विशेष अदालत ने आज देश का सबसे बड़ा घोटाला माने जाने वाले 2G स्पेक्ट्रम केस में UPA सरकार में दूरसंचार मंत्री रह चुके ए. राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. सीबीआई के स्पेशल जज ओम प्रकाश सैनी (57) ने यह फैसला सुनाया है. जज ओपी सैनी के फैसले ने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई की चार्जशीट की धज्जियां उड़ा दीं. जस्टिस सैनी ने इस केस में सबूतों के अभाव के लिए अफसोस भी जताया. जज सैनी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि उन्होंने सबूतों के लिए 7 साल तक शिद्दत से इंतजार किया था, लेकिन सीबीआई उनके समक्ष ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रही. नीचे पढ़ें, जस्टिस सैनी के फैसले की 4 प्रमुख बातें:
1- जस्टिस ओपी सैनी ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘विभिन्न अधिकारियों ने फाइलों में जो नोट्स लिखे, उनकी हैंडराइटिंग पढ़ना और समझना मुश्किल था. खराब हैंडराइटिंग में लिखे नोट्स से गलत संदेश और समझ बनी. नोट्स को या तो कूटभाषा में लिखा गया या इतना लंबा और तकनीकी भाषा में लिखा गया, जो किसी को आसानी से समझ में नहीं आ सकता लेकिन सहूलियत के आधार पर उसमें खामियां आसानी से ढूंढी जा सकती थीं. नोट्स को दस्तावेज के इतने किनारे पर लिखा गया कि उनमें से कुछ समय के साथ धुंधले पड़ गए और उन्हें ठीक से पढ़ा या समझा नहीं जा सकता था. बाहरी एजेंसियों की नोट्स को लेकर नासमझी से ये मतलब निकाल लिया गया कि गड़बड़ हुई है.’
2- ‘ऐसा कोई सबूत अदालत के सामने पेश नहीं किया गया, जिससे साबित हो कि आरोपियों ने कटऑफ डेट फिक्स करने, नीतियों में हेराफेरी करने, स्पेक्ट्रम आवंटित करने और कलाइनार टीवी को 200 करोड़ रुपये ट्रांसफर करने में कोई अपराध किया है. इस मामले की चार्जशीट सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नोट्स को गलत पढ़ने, सेलेक्टिव तरीके से पढ़ने, नहीं पढ़ने और संदर्भ के बाहर पढ़ने पर आधारित थीं. ये केस कुछ गवाहों के बयान पर टिका था, जो अदालत में अपने बयान पर कायम नहीं रहे.’
3- ‘मैं ये बात जोड़ सकता हूं कि चार्जशीट में दर्ज कई बातें तथ्यात्मक रूप से गलत हैं, जैसे कि वित्त सचिव ने दृढ़ता से एंट्री फीस में रिवीजन की सिफारिश की थी. ए राजा ने LOI के क्लॉज को मिटा दिया था. एंट्री फीस रिवीजन के बारे में TRAI की सिफारिशें इत्यादि.’
4- ‘पिछले सात साल से रोज़, गर्मियों की छुट्टियों में भी, मैं नियमपूर्वक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुली अदालत में बैठता रहा. इंतजार करता रहा कि कोई तो वैध सबूतों के साथ आएगा, लेकिन सब बेकार रहा. एक आदमी भी सामने नहीं आया. इससे संकेत मिलता है कि हर कोई अफवाहों, कल्पनाओं और अंदाज़े से बने जनता के नजरिए के हिसाब से चल रहा था. बहरहाल लोगों के नजरिए का न्यायिक प्रक्रिया में कोई स्थान नहीं होता है.’
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