नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक सामान्य नागरिक के पास आवाज नहीं होती है तो वो अपनी मांग के लिए कई सालों तक बोट क्लब या जंतर मंतर पर धरना दे लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता है जबकि एक राजनीतिक पार्टी के पास एक प्लेटफार्म होता है. इसके जरिए वो अपनी मांगों को लेकर कहीं भी सैंकडों लोगों को इकट्ठा कर धरना कर सकती है.
कोर्ट ने कहा कि राजनेता विधानसभा या संसद में अपने प्रतिनिधियों के जरिए अपनी आवाज उठा सकती है. ऐसे में कोर्ट राजनीतिक पार्टियों को ये इजाजत नहीं दे सकता कि वो किसी भी मामले में जनहित याचिका दाखिल करें अगर सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को जनहित याचिका दाखिल करने की इजाजत दी तो हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जनहित नहीं बल्कि निजी हित वाले मामलों की भरमार हो जाएगी.
कोर्ट ने कहा कि किसी भी मामले में ये साफ करना मुश्तकिल होगा कि कौन सी मांग जनहित की है और कौन सी निजी हित की है. कल को कोई पार्टी ये कहते हुए कोर्ट आ जाएगी कि हमारी बात संसद में नहीं सुनी जा रही, कोर्ट हमारी बात सुने, तब क्या होगा.
वहीं स्वराज अभियान की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जनहित के मामले में राजनीतिक पार्टियों को याचिका दाखिल करने की इजाजत हो अगर कोर्ट को लगे कि याचिका में जनहित नहीं राजनीतिक हित है तो उसे खारिज किया जा सकता है या जनहित के मुद्दे को निजी हित से अलग करके सुना जा सकता है.
देश भर में सूखे के हालात और किसानों की दुर्दशा को लेकर स्वराज अभियान की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. केंद्र ने कहा है कि कोर्ट को अब स्वराज अभियान की जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि वो अब राजनीतिक पार्टी बन चुकी है.