‘कैशलैस इकोनॉमी’ के फायदे ही नहीं कई नुकसान भी हैं, पढ़ लिजिए

नई दिल्ली: नोटबंदी के बाद अब सरकार लेने-देन के मामले में कैशलेश पर ज्यादा जोर दे रही है. रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में कैशलैस सोसाइटी का पक्ष लेते हुए कहा कि पूरी दुनिया जब कैशलैश इकोनॉमी की तरफ बढ़ रही है तो हमें भी इमें आगे बढ़ना चाहिए.
प्रधानमंत्री मोदी का यह फैसला भले ही शुरुआती दिनों के लिए अच्छा हो लेकिन करीब सवा अरब की आबादी वाले देश में इसे लेकर तमाम चुनौतियां और खतरे भी हैं, जिन्हें किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. खासकर ऐसे देश में जिसमें 80 फीसदी बाजार और उसकी अर्थव्यवस्‍था की लेन-देन नगदी पर टिकी हो. आइए नजर डालते हैं कैशलेस होने क्या नुकसान हो सकते हैं…
किसे मिलेगा लाभ और इसके क्या हैं नुकसान…
  • यह सबसे बड़ा सवाल है कि अगर नकद लेन-देन को खत्म करके लोग कैशलैस सोसाइटी की ओर ध्यान देते हैं तो कितने लोगों को इसका लाभ मिलेगा. भारत की पूरी आबादी करीब सवा अरब है. ट्राई द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार में देश में 70 करोड़ के करीब लोगों के पास मोबाइल कनेक्‍शन है.
  • इस तरह देश में स्मार्टफोन रखने वालों की संख्या 20 करोड़ के आसपास है हालांकि यह मार्केट काफी तेजी से बढ़ रहा है लेकिन अभी भी मोबाइल इस्तेमाल करने वाले बहुत से लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं ऐसे में वो लोग कैसे कैशलैस सिस्टम में खुद को एडजस्ट कर पाएंगे और उनका क्या जिनके पास मोबाइल भी नहीं है? वो कैसे कैशलेस की दुनिया में सरवाइव कर पाएंगे.
  • टेक्नोलॉजी की भी अपनी एक सीमा होती है. इस वजह से उसकी निर्भरता भी सीमित है. इसलिए देश की बड़ी आबादी तक लाभ पहुंचाना बहुत मुश्किल काम है. कैशलैस सोसाइटी के लिए इंटरनेट सबसे ज्यादा जरूरी है. लेकिन यह आपको भी पता है जहां चीन 6जी तक पहुच चुका है भारत में अभी 4जी ही लॉन्च हुआ है.
  • क्या आपको पता है भारत इंटरनेट स्पीड के मामले में दुनिया में 114 वे नंबर पर है. भारत की सबसे कम स्पीड 2.8 एमबीपीएस है, जबकि जापान जेसे देशों में यह 17.4 एमबीपीएस है. ऐसे में डिजिटल इंडिया की उम्मीद करना कैसे संभव है.
  • इंटरनेट की स्पीड के मामले में यहां तक की भारत के पड़ोसी देशों बांग्लादेश और फिलिपींस में भी भारत से बहुत बेहतर है. इसके अलावा भी इसका दूसरा पहलू और भी चिंताजनक है. भारत में स्मार्टफोन यूज करने वाली बड़ी आबादी अभी भी 2जी जैसी सस्ती सर्विस पर ही निर्भर है. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 2जी सर्विस इस्तेमाल करने वाले लोग डिजिटल ट्रांजेक्शन करना कितना मुश्किल होगा.
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