नेहरू-इन्दिरा की नीतियों से प्रभावित थे क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो

नई दिल्ली: क्यूबा के पूर्व राष्ट्रपति और क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो का आज 90 साल की उम्र में निधन हो गया है. उनके भाई और वर्तमान में राष्ट्रपति राउल कास्त्रो ने उनके निधन की पुष्टी की है.
कद्दावर कम्यूनिस्ट नेता और करीब 50 सालों तक क्यूबा की सत्ता संभालने वाले फिदेल कास्त्रो साल 1959 से ही अमेरिका के लिए आंख की किरकिरी बने रहे. कास्त्रो का शीतयुद्ध के दौरान सोवियत सेना को मदद देने के बाद से ही अमेरिका के साथ रिश्ते खट्ठे हो गए थे. उनके रिश्ते अमेरिका के साथ भले ही ज्यादा अच्छे न रहे हों लेकिन भारत के साथ क्यूबा के इस नेता के रिश्ते हमेशा से ही मजबूत रहे.
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी बहन मानने वाले कास्त्रो की छवि थर्ड वर्ल्ड के देशों में एक समाजवादी नेतृत्वकर्ता की है. बहुत से थर्ड वर्ल्ड देशों में जहां आज भी लेफ्ट का राजनीति में अहम रोल है वहां कास्त्रो को आदर्श के रूप में देखा जाता है.
शीतयुद्ध के वक्त से ही भारत और समाजवादी क्यूबा के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं. कास्त्रो ने भले ही अमेरिका से दूरी बनाकर रखी हो लेकिन भारत उनके लिए हमेशा से ही एक महत्वपूर्ण देश रहा है.
उन्होंने एक बार कहा था, ‘भारत की परिपक्वता, उसका बिना शर्तों के सिद्धांतों का पालन करना ही हमें इस बात का आश्वासन देता है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में गुटनिरपेक्ष देश शांति, विकास और स्वतंत्रता के लिए अपनी भूमिका पर लगातार काम करते रहेंगे.’
नेहरू से थे कास्त्रो के अच्छे संबंध
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से फिदेल कास्त्रो के संबंध काफी अच्छे थे. नेहरू ने एक बार 1960 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में शामिल होने के लिए न्यूयॉर्क पहुंचे कास्त्रो से बात करके उन्हें यह बताया था कि थर्ड वर्ल्ड के देश और गुटनिरपेश देश हमेशा से ही कास्त्रो के नेतृत्व को आशा भरी दृष्टी से देखते हैं. कहा जाता है कि नेहरू की वजह से ही कास्त्रो के दिल में भारत के लिए अलग जगह बनी थी.
बता दें कि जब कास्त्रो इस महासभा में शामिल होने के लिए न्यूयॉर्क पहुंचे थे तब उनके ठहरने के लिए होटल की व्यवस्था नहीं की गई थी, क्योंकि उस वक्त उनकी छवि अमेरिका विरोधी की थी. जिसके बाद कास्त्रो ने यूएन हेडक्वाटर के सामने ही टेंट लगाकर रात गुजारी थी. उनके इस कदम के बाद ही उनके लिए ठहरने की व्यवस्था की गई थी.
इंदिरा को मानते थे कास्त्रो अपनी बहन
भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह का कहना है कि कास्त्र इंदिरा गांधी को हमेशा से अपनी बहन मानते थे. जब इंदिरा गांधी  1974 में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के सम्मेलन की अध्यक्षता कर रही थीं, तब कास्त्रो ने उनके प्रति काफी आदर व्यक्त किया था. कास्त्रो वैसे तो नेहरू से अच्छे संबंध होने की वजह से इंदिरा की काफी रिस्पेक्ट करते थे, लेकिन उन्होंने जब 1974 के सम्मेलन में इंदिरा का भाषण सुना, जिसमें उन्होंने गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों के प्रति भारत के नजरिए को स्पष्ट रूप से रखा, तब कास्त्रो ने इंदिरा को शांति, राष्ट्रीय स्वतंत्रता और विकास का गढ़ कहा था.
इससे पहले कास्त्रो 1973 में भारत आए थे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी खुद उनके स्वागत के लिए दिल्ली में एयरपोर्ट पर पहुंची थी. कास्त्रो उस वक्त अपनी वियतनाम यात्रा पर थे.
राजीव गांधी से काफी प्रभावित थे फिदेल
साल 1985 में जब राजीव गांधी भारत के प्रधानमंत्री थे तब वे एक बार क्यूबा के दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने भारत के विकास और भारत-क्यूबा संबंधों पर बातें की. राजीव गांधी के साथ हुई चर्चा से कास्त्रो खासा प्रभावित हुए थे.
जब ज्योति बसू ने किया क्यूबा का दौरा
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और सीपीएम नेता ज्योति बसू की क्यूबा के राष्ट्रपति फिदेल से काफी अलग तरह की मुलाकात रही. एक बार जब बसू क्यूबा के दौरे पर थे उन्हें रात को 11:30 बजे बुलाया गया, जहां कास्त्रो ने उनसे पश्चिम बंगाल और भारत के विकास पर बातें की. इसके अलावा कास्त्रो ने भारत के सामाजिक सेक्टर के विकास पर भी बातें की. उनकी इस कोशिश ने यह साबित किया कि वह भारत के विकास और भारत के मुद्दों पर काफी रूचि रखते थे.
क्यों थे अमेरिका के लिए विलेन
कास्त्रो तब से अमेरिका के लिए विलेन बने जब उन्होंने सोवियत सेना को शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका के खिलाफ अपने देश की सीमा में मिसाइल तैनात करने की परमिशन दी थी. इस घटना के बाद से ही कास्त्रो हमेशा से चर्चा का विषय बने रहे और 1959 से अमेरिका के करीब 11 राष्ट्रपतियों के सामने बिना डरे खड़े रहे.
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