बिहार. पीएम मोदी के आलोचक रहे नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन को नालंदा यूनिवर्सिटी के बोर्ड में जगह नहीं मिली है. वहीं हैरानी की बात है कि बीजेपी सांसद इसमें जगह बनाने में कामयाब रहे हैं. जबकि अमर्त्य सेन पहले भी यूनिवर्सिटी के चांसलर, गवर्निंग बोर्ड के मेंबर रह चुके हैं.
गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में अर्थशास्त्र में भारत का पहला नोबेल पुरस्कार जीतने वाले मोदी सरकार के खिलाफ काफी कुछ कह चुके हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना के बाद फरवरी 2015 में चांसलर के पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद वह गवर्निंग बॉडी के सदस्य के तौर पर रहे.
उन्हें मनमोहन सरकार के दौरान नालंदा को फिर से शुरू करने के बाद नालंदा मेंटर ग्रुप का सदस्य बनाया गया था. बोर्ड में जगह ना बना पाने वालों में अमर्त्य सेन अकेले नहीं हैं. इनमें हॉवर्ड के पूर्व प्रोफेसर और टीएमसी सांसद सुगता बोस और यूके के अर्थशास्त्री मेघनाथ देसाई भी शामिल हैं. यह दोनों भी नालंदा मेंटर ग्रुप के सदस्य रहे थे. इसी के साथ इस मौके पर नए बोर्ड का भी गठन कर दिया गया है.
नए बोर्ड में चांसलर, वाइस चांसलर और पांच सदस्य शामिल हैं. ये पांच सदस्य भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, लाउस पीडीआर और थाईलैंड के होंगे. इस बोर्ड को तीन सालों के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी. इन पांच सदस्यों में भारत की ओर से पूर्व नौकरशाह एन के सिंह चुना है. वह भाजपा सदस्य और बिहार से राज्यसभा सांसद भी हैं.
बता दें कि नालंदा विश्वविद्यालय विधेयक को 2013, अगस्त में राज्यसभा में पेश किया गया था. इसमें नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करने को कहा गया था. हालांकि इसके बाद लोकसभा चुनाव की वजह से उसपर काम नहीं हो पाया.
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