नई दिल्ली. काला धन रोकने और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के मकसद से 500 और 1000 रुपए के नोट बैन करने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले का एक दूरगामी असर अर्थशास्त्री इस रूप में भी देख रहे हैं कि सरकार इस कवायद के खत्म होने के बाद करीब 5 लाख करोड़ की देनदारी से अपने आप फ्री हो जाएगी.
कैसे ? हर नोट पर ये लिखा होता है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया उस नोट के धारक को उतने रुपए का मूल्य अदा करने का वचन देता है. 500 और 1000 का नोट वापस लेने से सरकार ने करीब 14 लाख करोड़ रुपए को बाजार से वापस ले लिया है.
अगर अर्थशास्त्रियों और काला धन के एक्सपर्ट्स की मान लें तो 500 और 1000 के नोट का 40 परसेंट हिस्सा काला धन के रूप में हैं. इसका मतलब होगा करीब-करीब 5 लाख 60 हजार करोड़ रुपया. अब अगर 30 दिसंबर या 31 मार्च तक ये रुपया वापस बैंकों के पास नहीं जमा कराया गया तो सरकार इसके धारकों को कोई भी मूल्य अदा करने की जवाबदेही से बरी हो जाएगी.
सरकार ने 500 रुपए के 1658 करोड़ नोट और 1000 रुपए के 668 करोड़ नोट को बेकार कर दिया है. जिन लोगों के पास 500 और 1000 के नोट की शक्ल में काला धन है और वो उसे बैंक तक नहीं ले जाते हैं तो वो सारा नोट 31 मार्च के बाद खुद ही बर्बाद हो जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहें तो रद्दी का टुकड़ा हो जाएगा.
इस 5 लाख करोड़ का वैल्यू हमारे लिए इतना है कि देश के एक साल का राजकोषीय घाटा पूरा हो जाएगा. राजकोषीय घाटा मतलब सरकार का घाटा. लेकिन अर्थशास्त्री ऐसा करने को हमारी साख पर बट्टा मानते हैं.
रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव का मानना है कि अगर आरबीआई ने वापस ना लौटने वाले 500 और 1000 के नोट को अगर मुनाफे के तौर पर दिखाकर सरकार को सरेंडर किया तो इससे गलत संदेश जाएगा और समझ जाएगा कि इस कदम का मकसद काला धन या भ्रष्टाचार से लड़ना नहीं था.
सुब्बाराव का कहना है कि हरेक नोट पर जो धारक को अदा करने का जो वचन छपा है वो कानूनी है और ये सवाल बना हुआ है कि सरकार के फैसले के बाद आरबीआई उस वचन से मुक्त हो चुका है या नहीं. हालांकि सुब्बाराव इस कदम का लंबा असर बेहतरीन देखते हैं जिसमें बैंकों के पास ज्यादा पैसा होना और कर्ज का सस्ता होना शामिल है.