नई दिल्ली. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की ओर से गठित की गई विशेषज्ञों की समिति ने दावा किया है कि उसको हिंदू शास्त्रों और पुराणों में उल्लेखित सरस्वती नदी के बारे में कुछ ठोस प्रमाण मिल गए हैं.
समिति का मानना है हजारों साल पहले यह नदी हरियणा, राजस्थान और गुजरात के कच्छ से निकलकर अरब सागर में मिल जाती रही होगी. हालांकि कमेटी का यह भी कहना है कि इस बात के अभी कोई प्रमाण नहीं मिले है कि यह नदी या इससे निकलकर कोई दूसरी नदी इलाहाबाद की ओर भी गई और संगम में जाकर मिलती थी.
आपको बता दें कि भूगर्भ वैज्ञानिक केएस वल्दिया की अगुवाई में गठित 7 विशेषज्ञों की टीम इस समय सरस्वती नदी के प्रमाण खोज रही है. समिति ने पाया है कि हिमालय से निकलने वाली सतलुज जो के घघ्घर-पटियावाली से निकलती है कभी सरस्वती नदी की पश्चिमी धारा के रूप में जानी जाती थी.
मरकंडा और सरसुती नदियां सरस्वती नदी को पूरब की और रास्ता देने का काम करती जिसे आज टोन्स-यमुना नदी के नाम से जाता है.
ये दोनों नदियां पटियाला से 25 किमी दूर सरथाना में जाकर मिलती थीं और बड़ी नदी मिलकर गघ्घर-हरका नहर में परिवर्तित हो जाती थी जो आज भी मौजूद है इसके बाद वह कच्छ के रण से निकलते हुए अरब सागर में समा जाती थीं.
समिति फिलहाल सरस्वती नदी के प्रमाण खोजने के लिए और डाटा इकट्ठा कर रही है साथ ही आसपास के इलाके में पानी की संभवानओं की खोज कर रही है ताकि पता चल सके कि जमीन के नीचे कितना पानी है.