पिछले 10 महीनों में इंसेफ्लाइटिस से 420 लोगों की मौत, इस तरह फैलती है ये बीमारी

गोरखपुर. इंसेफ्लाइटिस का कहर पूर्वाचल के गोरखपुर में लगातार जारी है. सरकार के तमाम दावों और वादों के बावजूद इंसेफ्लाइटिस से मरने वालों की संख्या इस साल 420 हो गई है. इस बीमारी में मरने वालों में अधिकांश संख्या मासूम बच्चों की हैं. इसमें देवरिया, कुशीनगर, मऊ, महराजगंज और बिहार के ज्यादातर मरीज शामिल हैं.
कोमा जैसी स्थिति बनती है इस बीमारी में
इंसेफेलाइटिस एक तरह का दिमागी बुखार है, जो दिमाग को ग्रसित करता है. जितने लोग इस बीमारी से ग्रसित होते हैं, उनमें से केवल दस प्रतीशत लोग ही दिमागी बुखार से ग्रसित होते हैं. इस बीमारी के लझणों में बेहोशी, झटके आना और कोमा जैसी स्थिति साफ दिखाई देती है. ये ऐसी बीमारी बनकर सामने आ जाती है जहां 60 प्रतीशत मरीज मारे जाते हैं. इस बिमारी से बचे हुए मरीजों में से लगभग आधे लोग लकवाग्रस्त हो जाते हैं.
इसके लक्षण
इंसेफेलाइटिस आम तौर पर सिर में सुजन या दर्द, बुखार से शुरू होती है, लेकिन बाद में ये काफी भयानक रूप ले लेती है. जैसे आंखों की रोशनी कम होना, कम दिखना, अजीब से दौरे आना, सोचने की शक्ति कम हो जाना, भ्रम आदि. ज्यादातर ये बीमारी तीन से 15 साल के बच्चे या फिर 60 साल के बुर्जुगों में होती है. इंसेफेलाइटिस नाम का बुखार किसी भी जानवर के काटने से फैल जाता है.
इस तरह फैलती है ये बीमारी
इंसेफेलाइटिस का मुख्य कारणों में साफ-सफाई का अभाव माना जाता है. गंदगी की वजह से ये बीमारी एक से दूसरे में फैलती है. मच्छर या फिर किसी दूसरे कीट के काटने से ये बीमारी फैलती है. यह वायरस बैक्टेरिया के माध्यम से फैलती है. इसके वायरस ज्यादातार सूअर और हिरोनस नामक पानी की चिड़िया के शरीर पर पाए जाते हैं. अगर इन जानवरों और कीटों के काटने के बाद मच्छर किसी मनुष्य को काट लें तो उसे इंसेफेलाइटिस होने की पूरी आशंका होती है. गंदे पानी से भी ये बीमारी जल्दी से जल्दी फैलती है.
इसका इलाज
इंसेफेलाइटिस के लिए अभी तक कोई दवा नहीं बनी है, डॉक्टर ज्यादातर इस बिमारी से सावधानी बरतने को कहते हैं. इस बीमारी की जानकारी जितनी जल्दी होती है, मरीज के बचने की संभावना उतनी ही अधिक से अधिक रहती है. ये बीमारी पहले समझ नहीं आती है, बाद में इसके लक्ष्मण सामने आने लगते हैं. इंसेफेलाइटिस में झटके, डायरिया, ब्लड प्रेशर, दिमाग में संक्रमण और न्यूमोनिया के लिए दवाइयां दी जाती हैं. इस बीमारी में मरीजों को अकसर वेंटीलेटर पर रखने की आवश्यकता पड़ती है.
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