रतन टाटा ने कहा- साइरस मिस्त्री को हटाना हमारे भविष्य के लिए था जरूरी

मुंबई. साइरस मिस्त्री को टाटा समूह के चेयरमैन पद से हटाने के फैसले पर अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा ने कहा है कि मिस्त्री को हटाना भविष्य के लिए बहुत ज्यादा जरूरी था.

100 अरब से ज्यादा का कारोबार करने वाली कंपनी के अंतरिम चेयरमैन रतन टाटा ने कंपनी के लोगों के लिए लिखे गए खत में कहा, ‘टाटा के नेतृत्व को बदलना बोर्ड मेंबर्स की तरफ से बेहद सोच समझ कर लिया गया एक गंभीर फैसला है. यह कठिन निर्णय पूरी और अच्छी तरह से सोच समझकर लिया गया है. यह फैसला टाटा के भविष्य की सफलता के लिए बेहद जरूरी था.’

TATA ने सायरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाया, रतन टाटा को अंतरिम कमान

यह खत मिस्त्री कार्यालय की ओर से दिए गए उस बयान के बाद आया है जिसमें मिस्त्री ने कहा था कि ये कहना गलत और शरारत भरा है कि उन्होंने टाटा-डोकोमो मामले में जो कार्रवाई की वह खुद की मर्जी से और बिना रतन टाटा की जानकारी से की थी.

मिस्त्री के कार्यालय ने मंगलवार को एक बयान जारी किया था जिसमें यह भी कहा गया कि यह आरोप निराधार है कि मिस्त्री ने डोकोमो के मामले में निपटने के लिए जो तरीका अपनाया वह टाटा की संस्कृति और मूल्यों से अलग था.

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बयान में यह भी कहा गया कि टाट-डोकोमो मामले में जो भी निर्णय लिए गए थे वह कंपनी के निदेशक मंडल की परमिशन के बाद ही लिए गए थे. साथ-ही-साथ यह भी कहा गया कि डोकोमो के मुद्दे पर निदेशक मंडल के साथ चर्चाएं भी हुई थीं.

क्या है टाटा-डोकोमो मामला ?
टाटा एंड सन्स का जापान की एनटीटी डोकोमो कंपनी के साथ भुगतान के मुद्दे पर मुकदमा चल रहा है. नवंबर साल 2009 में जापान की डोकोमो कंपनी ने टाटा टेलीसर्विसेज में कुल 26.5 फीसदी की हिस्सेदारी ली थी. उस वक्त 117 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 12,740 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था. उसी वक्त इस बात पर सहमति हुई थी कि अगर कंपनी पांच साल के अंदर टाटा कंपनी छोड़ती है तो अधिग्रहण की कीमत का करीब 50 फीसदी भुगतान वापस देना होगा.

साल 2014 में डोकोमो ने टाटा से अलग होने का फैसला कर लिया. उसने प्रति शेयर 58 रुपये के हिसाब से कुल 7,200 करोड़ रुपये की मांग टाटा के सामने रख दी. इस पर टाटा ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के एक नियम का हवाला देते हुए डोकोमो के सामने प्रति शेयर 23.34 रुपये के हिसाब से भुगतान करने की बात कही.

क्या है आरबीआई का नियम ?
आरबीआई का नियम कहता है कि अगर विदेश की कोई कंपनी निवेश से बाहर निकलने का फैसला करती है तो उसे शेयर पूंजी पर लाभ के आधार पर तय कीमत से अधिक का भुगतान नहीं किया जा सकता.

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