नई दिल्ली. अंग्रेजी से डरने और हिन्दी को प्यार करने वालों के लिए मोदी सरकार अच्छी खुशखबरी दे सकती है. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि विशेषज्ञों की टीम देश के सभी शिक्षा संस्थानों से अग्रंजी की छुट्टी करने की तैयारी में है. उनका मनाना है कि इससे भारतीय भाषाओं को मजबूती मिलेगी.
दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से एफलिएटेड शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (SSUN) ने मानव संसाधन विकास को एक पत्र लिखा है जिसमें देश भर के सभी शिक्षा संस्थानों से अग्रेजी को हटाने की मांग की गई है. अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक SSUN ने चाहता है कि देश में नई शिक्षा नीति लागू किया जाए और आईआईटी-एम्स में ही मातृभाषा में पढ़ाई हो.
हिन्दी में हो टीवी कार्यक्रमों की प्रसारण
सांस्कृतिक और भाषा में बदलाव की शुरुआत में मीडिया की भूमिका अहम भूमिका होती है. इसलिए दिन में टीवी पर आने वाले सभी कार्यक्रम हिन्दी या क्षेत्रीय भाषाओं में होने चाहिए. अंग्रेजी कार्यक्रमों का प्रसारण रात के 11 बजे के बाद होना चाहिए.
UGC को करनी होगी मदद
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का यह भी कहना है कि भारतीय भाषाओं के साथ वैकल्पिक रूप में भी विदेशी भाषा को शामिल नहीं किया जाए. SSUN ने कहा है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी इस बात का रिसर्च के दौरान इस बात का ख्याल रखना चाहिए जिससे भारतीय संस्कृति, परंपरा, संप्रदायों, देश के विद्वानों के विचारों को ठेस न पहुंचे. साथ ही किताबों के जरिए भारतीय विद्वानों और देश की संस्कृति से छात्रों को अवगत कराया जाए.
छात्रों पर रखनी होगी नजर
हम किताबों-फिल्मों को तो बैन कर रहे हैं तो फिर छात्रों को TOEFL, SAT, GRE, GMAT और IELTS पर चर्चा करने से क्यों नहीं रोकते. छात्र इसके बारे में बातें करते हैं और पढ़ाई करने के लिए विदेश की ओर रुख अख्तियार कर रहे हैं. इसे रोकने की दरकार है.
छात्रों को पढ़ाई जाए कप्तान आनंद की पुस्तकें
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने एक बयान में कहा, ‘प्लास्टिक सर्जरी और जेनेटिक साइंस प्राचीन भारत की ही देन है. पाइथागोरस का सिद्धांत भी भारत की ही देन है लेकिन हमने यह क्रेडिट ग्रिस को दे दिया है. साथ ही छात्रों कप्तान आनंद बोडास की उन संस्कृत किताबों को पढ़ने के लिए कहा जा सकता है जिसे उन्होंने स्वदेसी विमान बनाने के लिए लिखा था. आनंद पायलट प्रशिक्षण केंद्र के एक सेवानिवृत्त प्राचार्य थे.
हालांकि यदि संघ ऐसा चाहता है कि उसे इसकी शुरूआत खुद से ही करनी होगी. आरएसएस को यह सुनिश्चित करना होगा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के सभी भाजपा नेता एक प्रतिज्ञा के साथ अपने बच्चों का दाखिला हिन्दी भाषी या क्षेत्रीय भाषा वाले शिक्षण संस्थानों में कराएं.