नई दिल्ली. अपराध करते वक्त भ्रम के चलते अगर कोई खुद को देवता या देवी समझता है तो क्या उसे राहत दी जा सकती है, ये अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा. जी हां, मध्य प्रदेश की रहने वाली एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि अपराध करते वक्त वो खुद को देवी समझ रही थी, ऐसे में उन्हें दोषी न माना जाए.
30 साल की राजवा कॉल ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि अपराध करते वक्त वो भव्यता के भ्रम से पीड़ित थीं और खुद को देवी समझ रही थीं, ऐसे में उन्होंने हत्या का दोषी न माना जाये.
अर्जी में भारतीय दंड संहिता का उल्लेख करते हुए लिखा गया है कि धारा 84 के मुताबिक अगर किसी काम को करते वक्त व्यक्ति को इस बात का एहसास न हो कि वो क्या कर रहा है या वो घटना की गंभीरता को न समझ रहा हो या फिर जो वो कर रहा है वो कानून के खिलाफ है या नहीं उसे इस बात का एहसास न हो तो ऐसे में उसे दोषी नहीं माना जा सकता.
बता दें कि 3 मार्च 2012 को कॉल ने अपने पति सहित 3 लोगो की हत्या कर दी थी और 7 लोगों को घायल कर दिया था. कॉल ने अपनी याचिका में कहा है की ये घटना तब की है जब उन्हें मानसिक इलाज के लिए हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था. उस समय उन्होंने अपने पति रमेश कॉल, पड़ोसी छोटू यादव और गुड़िया यादव की पिंसर (सडसी) से हत्या कर दी थी.
राजवा कॉल को 2015 में निचली अदालत ने फासी की सजा सुनाई थी जिसे पलटकर हाई कोर्ट ने 2016 में उम्र कैद में तब्दील कर दिया था. हाई कोर्ट ने कहा ये मामला जघन्य अपराध के तहत नहीं आता है.