नई दिल्ली. शहाबुद्दीन को जेल मिलेगी या बेल ये सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को तय करेगा. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है. गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर बिहार सरकार को लताड लगाई. कोर्ट ने कहा कि कुछ तो बेहद गंभीर है. ये मामला एकतरफा नहीं हो सकता. इसे संतुलित होना चाहिए.
डेढ साल पहले सरकार ने इस केस में चार्जशीट दाखिल की लेकिन उसकी कापी शहाबुद्दीन को नही दी गई. कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं समझना चाहिए कि निचली अदालत की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट को नहीं पता. सरकार ने पुलिस दस्तावेज भी दाखिल नहीं किए. ये गंभीर शंका पैदा करता है. भले ही बिहार सरकार शहीबुद्दीन हिस्ट्रीशीटर कहे लेकिन हमें संविधान के दिए जीने के अधिकार को भी याद रखना चाहिए.
वहीं शहाबुद्दीन की ओर से दलील दी गई कि बिहार सरकार ने केस के आरोपपत्र की कॉपी नहीं दी गई. इतना ही नहीं सरकार ने ट्रायल में देरी करने के लिए सरकार ने ड्रामा रचकर उन्हें सिवान से भागलपुर ट्रांसफर कर दिया. जबकि हाईकोर्ट ने नौ महीने में ट्रायल पूरा करने को कहा था. ये सबकुछ इसलिंए किया गया ताकि ट्रायल में देरी हो. शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई सबूत नहीं कि हत्या में उनका हाथ है. यही वजह है कि सरकार ट्रायल में देरी करना चाहती है. वो बिहार से बाहर रहने को तैयार हैं, जमीनत रद्द ना की जाए.
बता दें कि 16 अगस्त 2004 को सीवान के व्यवसायी चंदा बाबू भूमि विवाद के निपटारे को लेकर पंचायत में थे. इसी बीच कुछ लोगों ने उन्हें मारने की धमकी दी. विवाद बढ़ा तो मारपीट हो गई. चंदा बाबू के बेटे और परिजन घर से भागने लगे और उन्होंने घर में रखे तेजाब को आक्रमणकारियों पर फेंक कर अपनी जान बचाई.