पटना. बिहार सरकार ने मंगलवार को शहाबुद्दीन के खिलाफ अतिरिक्त दस्तावेज सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए हैं. सरकार ने कोर्ट में कहा कि शहाबुद्दीन मामले में सरकार की तरफ से कोई देरी नहीं हुई है. सरकार ने कहा शहाबुद्दीन के खिलाफ कुल 75 मामले हैं, जिनमें से 10 मामलों में दोषी करार, 20 मामलों में बरी, 45 मामले अभी लंबित हैं और इन लंबित मामलों की सुनवाई पर हाईकोर्ट ने रोक लगा रखी है.
बिहार सरकार ने कहा कि ऐसे में शहाबुद्दीन को जमानत नहीं दी जानी चाहिए. जिन मामलों में वो बरी हुआ है वो 1988 से 1996 के बीच के हैं, लेकिन जब उनको जेल में बंद किया गया तो उसके बाद वो किसी भी मामले में बरी नहीं हुआ. जिन भी मामलो में सुनवाई पूरी हुई उसे दोषी पाया गया. ऐसे में शहाबुदीन अगर जेल के बाहर रहता है तो उसके खिलाफ कोई गवाही नहीं देगा और वो बरी हो जायेगा.
बुधवार को होगी अगली सुनवाई
वर्ष 2004 में दो भाइयों गिरीश और सतीश की हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को दिसंबर 2015 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. मामले में इकलौते गवाह मृतकों के भाई राजीव रोशन की भी 16 जून 2014 को हत्या कर दी गई थी. इन दोनों मामलों में शहाबुद्दीन को मिली जमानत को रद्द करने मांग की गई है. मामले की सुनवाई बुधवार को होगी.
बिहार सरकार ने कहा कि हाई कोर्ट में शहाबुदीन के जिन 45 लंबित मुकदमो पर रोक लगाई है उसका आधार ये है कि शहाबुद्दीन के पास वकील नहीं है. जब हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान बिहार सरकार की तरफ से ये बताया गया कि शहाबुद्दीन वकील कर सकता है और उसके पास इतने पैसे हैं कि कोई वकील उसके लिए बहस करे ऐसे में हाई कोर्ट ने ये तय करने के लिए मुकदमों पर रोक लगा दी कि क्या शहाबुद्दीन को वकील मुहैया कराया जाना चाहिए या नहीं.
बिहार सरकार ने ये भी कहा कि 2004 में दो भाइयों गिरीश और सतीश की हत्या के मामले में शहाबुद्दीन को दिसंबर 2015 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. मामले में इकलौते गवाह मृतकों के भाई राजीव रोशन की भी 16 जून 2014 को हत्या कर दी गई थी. इस मामले में हाई कोर्ट ने निचली अदालत को 9 महीने के भीतर सुनवाई पूरी करने के आदेश दिए थे लेकिन इसी बीच शहाबुद्दीन ने निचली अदालत के सुनवाई को सेशन कोर्ट में चुनौती दी और निचली अदालत से सारा रिकॉर्ड वहां मंगवा लिए जिस वजह से मामले में कोई प्रगति नहीं हो पाई.
जुलाई में सेशन कोर्ट ने शहाबुद्दीन की याचिका को ख़ारिज की लेकिन इसी बीच शहाबुद्दीन ने देरी के आधार पर हाई कोर्ट में जमानत अर्जी दाखिल कर दी और हाई कोर्ट ने बिना बिहार सरकार का पक्ष सुने ही उसे जमानत दे दी.