नई दिल्ली. भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 में हुए सिंधु जल समझौते की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक बुलाई थी. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मोदी सरकार सिंधु जल समझौते बरकरार रखेगी. सरकार इसे तोड़ने के पक्ष में नहीं है. अभी कुछ देर पहले बैठक खत्म हुई थी.
इस बैठक में प्रधानमंत्री को आला-अधिकारियों ने इसके नुकसान और फायदों के बारे में बताया. इस बैठक में विदेश सचिव एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पीएम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नृपेंद्र मिश्र शामिल हुए थे.
रिपोर्ट्स के अनुसार सरकार इस नतीजे पर आई है कि सिंधु नदी पर भारत पॉवर प्रोजेक्ट बनाएगा. रिपोर्ट्स की मानें तो ऐसा कदम चीन की वजह से उठाया गया है क्योंकि बह्मपुत्र नदी चीन से होकर भारत आती है साथ ही सिंधु नदी भी चीन से होकर भारत आती है.
अगर भारत सिंधु जल समझौते को रद्द करता है तो चीन भी भारत को पानी न दे. इसलिए सरकार सिंधु जल समझौते बरकरार रखेगी. बता दें कि भारत से गुजरने वाली सिंधु नदी का 80 फीसदी पानी पाकिस्तान को जाता है और करोड़ों लोगों की प्यास बुझाता है.
क्या है सिंधु जल समझौता ?
सिंधु जल समझौता (Indus Water Treaty) 1960 में हुआ था. इस पर वर्तमान पीएम जवाहर लाल नेहरू और पाक पीएम अयूब खान ने दस्तखत किए थे. इस समझौते के तहत छह नदियों- झेलम, रावी, सिंधु, ब्यास, चेनाब और सतलज का पानी भारत और पाकिस्तान को मिलता है. पाकिस्तान हमेशा आरोप लगाता रहा है कि भारत उसे समझौते की शर्तों से कम पानी देता है. पाकिस्तान दो बार इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल में शिकायत भी कर चुका है.
सिंधु नदी संधि को विश्व के इतिहास का सबसे उदार जल बंटवारा माना जाता है. इस संधि के तहत पाकिस्तान को 80.52 प्रतिशत पानी यानी 167.2 अरब घन मीटर पानी सालाना दिया जाता है. 1960 में हुए सिंधु नदी संधि के तहत उत्तर और दक्षिण को बांटने वाली एक रेखा तय की गई है, जिसके तहत सिंधु क्षेत्र में आने वाली तीन नदियों का नियंत्रण भारत और तीन का पाकिस्तान को दिया गया है. 2011 में अमेरिकी सीनेट की फॉरेन रिलेशन कमेटी के लिए तैयार की गई रिपोर्ट में सिंधु जल संधि को दुनिया की सबसे सफल जल संधि बताया गया था.