उम्मीदों की रोशनीः कंगाल वितरण कंपनियां दे रही हैं बिजली कटौती का झटका !

नई दिल्ली. देश में बिजली की डिमांड इन दिनों काफी कम है. डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों की ओर से मांग ना होने के चलते थर्मल पावर प्लांट को बिजली उत्पादन घटाना पड़ा है. फिर भी देश के ज्यादातर राज्यों में लोगों को बिजली कटौती झेलनी पड़ रही है, क्योंकि बिजली बेचने वाली सरकारी कंपनियां बिजली खरीदने से मुंह चुरा रही हैं.
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इंडिया न्यूज़-IPPAI की पड़ताल
देश में बिजली की दशा और दिशा की पड़ताल करने के लिए इंडिया न्यूज़ ने इंडिपेंडेंस पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IPPAI) के साथ ‘उम्मीदों की रोशनी’ के नाम से सीरीज़ शुरू की है. IPPAI देश में ऊर्जा क्षेत्र की पहली थिंकटैंक है, जो 1994 से भारत में ऊर्जा क्षेत्र की सच्चाई पर खुली बहस के लिए निष्पक्ष मंच के रूप में काम कर रही है.
कंगाल कंपनियां हैं कटौती की जिम्मेदार
दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद जैसे शहरों को छोड़ दें, तो देश के सभी राज्यों में उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचाने का जिम्मा सरकारी डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के पास है. ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश भर की बिजली कंपनियां गले तक कर्ज़ में डूबी हैं. 31 मार्च 2015 तक पूरे देश में बिजली कंपनियों के कर्ज़ की रकम 3 लाख 80 हज़ार करोड़ थी, जिसमें हर साल 12 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है. पुराना कर्ज़ चुका पाने में नाकामी के चलते डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां बिजली खरीदने से कतरा रही हैं, जिससे लोगों को बिजली कटौती झेलनी पड़ रही है.
राजस्थान, यूपी, एमपी, पंजाब का बुरा हाल
देश में सबसे ज्यादा कर्ज राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों पर हैं. सितंबर 2015 तक राजस्थान में बिजली की उधारी 80 हज़ार 530 करोड़ रुपये थी. यूपी, एमपी, पंजाब और हरियाणा का हाल भी काफी बुरा है. ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक, सितंबर 2015 तक यूपी की बिजली वितरण कंपनियों पर 53 हज़ार 221 करोड़ रुपये, मध्य प्रदेश की बिजली वितरण कंपनी पर 34 हज़ार 739 करोड़ रुपये, पंजाब की बिजली वितरण कंपनियों पर 20 हज़ार 837 करोड़ 60 लाख रुपये और हरियाणा की बिजली वितरण कंपनियों पर 34 हज़ार 600 करोड़ रुपये बकाया था. इसकी भरपाई करके अपनी आर्थिक हालत सुधारने के लिए इन राज्यों ने ऊर्जा मंत्रालय के साथ उदय योजना के तहत करार किया है.
पावर परचेज एग्रीमेंट से आनाकानी
देश में बिजली कंपनियों को बिजलीघरों के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट करना होता है, जो 25 साल के लिए होता है. चूंकि पावर परचेज एग्रीमेंट के तहत बिजली ना खरीदने पर भी कंपनियों को न्यूनतम दर चुकानी होती है, इसलिए बिजली वितरण कंपनियां ज़रूरत के हिसाब से पावर परचेज एग्रीमेंट करने से आनाकानी कर रही हैं. ऊर्जा विशेषज्ञ मानते हैं कि मौजूदा दौर में पावर परचेज एग्रीमेंट बेमानी हो चुका है, क्योंकि बिजली की मांग और कीमतों का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है. अब इस बात की पैरवी की जा रही है कि लंबे समय तक के लिए एग्रीमेंट करने की बजाय शॉर्ट टर्म मार्केट से बिजली खरीदना और बेचना ज्यादा बेहतर है.
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