उम्मीदों की रोशनीः बिजलीघरों में कोयले का अंधेरा !

देश के बिजली सेक्टर में कोयला अंधेरा फैला रहा है. कोयला से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट अपनी क्षमता से बहुत कम बिजली उत्पादन कर रहे हैं और जो बिजली थर्मल प्लांट में पैदा हो रही है, वो भी महंगी है, क्योंकि कोयले की कीमत लगातार बढ़ रही है और कोयले की क्वॉलिटी घटिया है.

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उम्मीदों की रोशनीः बिजलीघरों में कोयले का अंधेरा !

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  • September 12, 2016 11:30 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली.  देश के बिजली सेक्टर में कोयला अंधेरा फैला रहा है. कोयला से चलने वाले थर्मल पावर प्लांट अपनी क्षमता से बहुत कम बिजली उत्पादन कर रहे हैं और जो बिजली थर्मल प्लांट में पैदा हो रही है, वो भी महंगी है, क्योंकि कोयले की कीमत लगातार बढ़ रही है और कोयले की क्वॉलिटी घटिया है.
 
इंडिया न्यूज़-IPPAI की पड़ताल
देश में बिजली की दशा और दिशा की पड़ताल करने के लिए इंडिया न्यूज़ ने इंडिपेंडेंस पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IPPAI) के साथ ‘उम्मीदों की रोशनी’ के नाम से सीरीज़ शुरू की है. IPPAI देश में ऊर्जा क्षेत्र की पहली थिंकटैंक है, जो 1994 से भारत में ऊर्जा क्षेत्र की सच्चाई पर खुली बहस के लिए निष्पक्ष मंच के रूप में काम कर रही है.
 
ठंडे पड़ गए थर्मल पावर प्लांट
सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के मुताबिक, देश में जितनी बिजली पैदा हो रही है, उसका 61 फीसदी हिस्सा एनटीपीसी, राज्यों के थर्मल प्लांट और निजी थर्मल प्लांट से आता है. फिलहाल देश के थर्मल पावर प्लांट अपनी क्षमता से काफी कम बिजली उत्पादन कर रहे हैं. जुलाई 2016 में थर्मल पावर प्लांट का प्लांट लोड फैक्टर सिर्फ 52 फीसदी था. प्लांट लोड फैक्टर में लगातार गिरावट की वजह ये है कि राज्य सरकारों की बिजली डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों की आर्थिक हालत ठीक नहीं है, जिससे वो बिजली खरीदने को तैयार नहीं हैं.
 
महंगा कोयला, वो भी घटिया !
थर्मल पावर कंपनियों के सामने अब कोयले की कीमत और क्वॉलिटी ने भी बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. सरकार का निर्देश है कि थर्मल प्लांट घरेलू कोयला खदानों से ही कोयला खरीदें. थर्मल पावर कंपनियों का कहना है कि घरेलू खदानों के कोयले की क्वॉलिटी ठीक नहीं है.
 
2015 में ऑस्ट्रेलियाई उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट में भी दावा किया गया था कि भारतीय खदानों से निकलने वाले कोयले में प्रति किलो ऊर्जा का स्तर बहुत कम है. इसका सीधा सा मतलब ये है कि भारत में थर्मल पावर कंपनियां अगर घरेलू कोयले का इस्तेमाल करती हैं, तो उन्हें बिजली उत्पादन के लिए ज्यादा कोयला जलाना पड़ता है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है. इसके साथ ही भारत में कोयले की कीमत इस साल जून में 13-19 फीसदी तक बढ़ाई गई है, जिसके चलते तटवर्ती इलाकों के थर्मल प्लांट के लिए घरेलू कोयला आयातित कोयले से भी महंगा पड़ रहा है.
 
उपभोक्ताओं पर महंगे कोयले की मार
महंगा कोयला होने के चलते थर्मल पावर में उत्पादन लागत बढ़ने का खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है. बिजली कंपनियों का घाटा कम करने के लिए राज्यों के इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटर आए दिन फ्यूल सरचार्ज एडजस्टमेंट की दर बढ़ा रहे हैं, जिसकी वसूली बिजली उपभोक्ताओं से ही की जाती है. हरियाणा में फ्यूल सरचार्ज एडजस्टमेंट की मौजूदा दर 1.64 रुपये प्रति यूनिट है, जबकि अहमदाबाद में बिजली सप्लाई करने वाली टोरेंट पावर अपने उपभोक्ताओं से 1.98 रुपये प्रति यूनिट की दर से फ्यूल सरचार्ज एडजस्टमेंट वसूल रही है.
 

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