अर्ध सत्य: तीन तलाक के पीछे मर्द मानसिकता की तलाश

नई दिल्ली. एक महिला मारी ना जाए. कोई बहाना बनाकर उसको चौखट के बाहर धकेल ना दिया जाए. शरीर की जरुरतों के लिए मर्द को बाहर ना जाना पड़े इसलिए उस महिला को तलाक..तलाक..तलाक कहने का हक शौहर के पास है.
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मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव ना करने की दलील लेकर जो लोग सुप्रीम कोर्ट पहुंचे वो यही कह रहे थे. सवाल ये है कि हिंदुस्तान जैसे लोकतंत्र में बराबरी के अधिकार के मौजूदा दौर में औरतों की बेहतरी की सरकारी योजनाओं में ये दलील कहीं भी फिट नहीं बैठ सकती. ये निहायत दकियानूसी, सामंती, मर्दवादी और बीवी के वजूद को तार-तार करने वाली है. ये मैं नहीं कह रहा. ये वो सारी महिलाएं कह रही हैं जो तलाक तलाक तलाक के इस्लामी कायदों को देश की अदालतों में चुनौती दे रही हैं.
सवाल बुनियादी है वो ये कि क्या पति पत्नी का रिश्ता कोई सौदा है जो पसंद नहीं आया और आपने लौटा दिया. क्या ये इतना कमजोर है कि आपने तलाक तलाक तलाक कहा और खत्म हो गया. क्या बीवी शौहर की मर्जी के मुताबिक परिवार के दायरे में इस्तेमाल होने वाली कोई सामान है जो घर के सांचे में जब कभी फिट ना बैठे तो आप बाहर निकाल फेंकिए. दरअसल यह परिवार के बुनियादी ढांचे और पत्नी के जरुरी हक के खिलाफ है. यह बात दम ठोंक कर वो लोग कहते हैं जो इस्लाम के दायरे में हैं और बीवी के बराबरी के हक की पैरोकारी करते हैं.
दरअसल कुरान में निकाह, तलाक, जायदाद के बंटवारे, विरासत और पारिवारिक विवाद के बारे में जो कुछ कहा गया है या फिर पैगम्बर मुहम्मद ने जो कुछ अपने जीवन में कहा और किया है जिसको आप हदीस कहते हैं. इन दोनों यानि कुरान और हदीस के जरिए 1937 में अंग्रेजी हुकूमत ने मुस्लिम पर्सनल लॉ तैयार किया जो आज भी चलता है. अंग्रेजों की कोशिश थी कि वो भारतीयों पर उनके सांस्कृतिक नियमों के मुताबिक शासन करें.
हिंदुओं, बौद्ध, सिखों, जैनियों के लिए भी शादी, तलाक, जायदाद, पारिवारिक झगड़ों के मामलों में हिंदू पर्सनल लॉ लागू होता है लेकिन 1972 में हुआ ये कि मुस्लिमों से संबंधित एक बिल संसद में लाया गया. देश के मौलानों, उलेमाओं और मुस्लिम नेताओं को लगा कि ये बिल उनके खिलाफ है इसलिए एक अपना बोर्ड बनाया जाना चाहिए.
नतीजा ये हुआ कि 7 अप्रैल 1973 को हैदराबाद में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बनाया गया. जो आज भी पर्सनल लॉ के मामलों में देश की मुस्लिम आबादी की सबसे बड़ी संस्था होने का दावा करता है… यही बोर्ड तीन तलाक के मामले में ऐसा लगता है कि मर्दों की तरफ से मोर्चा थामे हुए है.
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