उम्मीदों की रोशनीः देश के 47 फीसदी उद्योग जेनरेटर पर निर्भर

देश में बिजली दशकों पुराना चुनावी मुद्दा रहा है. हर चुनाव में सभी पार्टियों के नेता गरीबों को सस्ती, किसानों को मुफ्त और बाकी लोगों को चौबीसों घंटे बिजली देने का वादा करते हैं. हर साल बिजली सब्सिडी के रूप में सरकारें अरबों रुपये खर्च करती हैं.

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उम्मीदों की रोशनीः देश के 47 फीसदी उद्योग जेनरेटर पर निर्भर

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  • August 21, 2016 10:52 am Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. देश में बिजली दशकों पुराना चुनावी मुद्दा रहा है. हर चुनाव में सभी पार्टियों के नेता गरीबों को सस्ती, किसानों को मुफ्त और बाकी लोगों को चौबीसों घंटे बिजली देने का वादा करते हैं. हर साल बिजली सब्सिडी के रूप में सरकारें अरबों रुपये खर्च करती हैं, लेकिन किसानों को वक्त पर बिजली नहीं मिलती और आम लोग बिजली बिल ज्यादा आने की शिकायत करते हैं.
 
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देश की रफ्तार बढ़ाने के लिए सबसे ज्यादा जोड़ बिजली पर ही दिया जाता है. लेकिन बिजली से संबंधित कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. उपभोक्ताओं को पर्याप्त बिजली ना मिलने की शिकायत, कारोबारियों को महंगी बिजली भी पूरी नहीं मिलती. लागत से ज्यादा कीमत पर बिजली खरीदतें हैं कारोबरी ?
 
डीजल जेनरेटर कारोबारियों के लिए मज़बूरी है. देश में 47 फीसदी उद्योग डीज़ल जेनरेटर पर निर्भर है. डीज़ल जेनरेटर से बिजली दोगुनी महंगी है. 75 गीगावॉट बिजली डीज़ल जेनरेटर से लेने की मजबूरी. हर साल डीजल जेनरेटर वाली बिजली में 5 गीगावॉट की बढ़ोतरी है. लाइन लॉस से बिजली कंपनियों को भारी नुकसान होता है. लेकिन इस सब में सबसे बड़ा सवाल ये है कि बिजली उधोग का फायदा किसको हो रहा है ? 

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