रांची: रियो ओलिम्पिक 2016 में अपने खिलाड़ियों की हार से पूरा देश आहत है. किसी को खीझ हो रही है कि 1 अरब से ज्यादा की जनसंख्या वाला हमारा देश ओलंपिक में एक पदक के लिए भी तरस रहा है तो कुछ लोग खिलाड़ियों की खिल्ली उड़ा रहे हैं. सभी का यही सवाल है कि आखिर हम पदक से इतने दूर क्यों रह जाते हैं?
इस सवाल का जवाब झारखंड में उन बच्चों की ट्रेनिंग और प्रैक्टिस के तरीके को देखकर मिल जाएगा, जो ओलंंपिक में मेडल हासिल करने का ख्वाब आँखों में लिए जी जान से प्रैक्टिस तो कर रहे हैं, फर्क बस इतना है कि इनकी प्रैक्टिस किसी ग्राउंड या कैंप के बजाए खतरनाक बांधों में हो रही है.
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक स्थानीय बांध पर हर सुबह 16-वर्षीय राज्यस्तरीय तैराक रेखा कुमारी और आसपास के गांवों के अन्य उभरते तैराक अभ्यास के लिए इकट्ठा होते हैं. यह बांध ऊपर तक लबालब भर चुका है. यहां इन बच्चों की ट्रेनिंग भारतीय तैराकी फेडरेशन (स्विमिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया) ही करा रही है.
हालांकि रांची में वर्ष 2011 में हुए राष्ट्रीय खेलों के लिए तैयार किया गया बेहद शानदार स्टेडियम कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसमें ओलंंपिक के आकार का बढ़िया स्विमिंग पूल भी है, लेकिन वह पिछले दो साल से बंद पड़ा है. इसके बंद रहने का कारण कोई भी अधिकारी नहीं बता पाया. प्रैक्टिस सत्र खत्म होने के बाद कोच उमेश कुमार से जब पूछा गया, ‘आप इन्हें इस बांध में डाइव करना कैसे सिखाते हैं?’, कोच का जवाब था, ‘यहां डाइविंग के लिए कोई ढंग की जगह नहीं है. काश, सरकार इस बारे में कुछ करती.’
उधर, रेखा कुमारी कहती हैं कि उनका लक्ष्य 2020 के ओलंंपिक खेलों में पदक हासिल करना है. रेखा का कहना है कि, ‘हां, हमें डर लगता है. लेकिन हमें यह करना ही पड़ेगा. मैं ओलंंपिक में मेडल जीतना चाहती हूं.’ झारखंड तैराकी एसोसिएशन के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने राज्य सरकार को कई खत लिखे हैं. उनसे ये सवाल भी किया है कि रांची वाला कॉम्प्लेक्स अभ्यास के लिए क्यों नहीं खोला जा सकता. वर्ष 2012 में इस पूल को 54 तैराकों के अभ्यास के लिए खोला गया था. लेकिन सिर्फ दो ही महीने बाद कोच और तैराकों को बिना कोई कारण बताए से इसे खाली करने के लिए कह दिया गया.