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Exclusive- अस्थाई कैंपो की जगह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में ही हो नसबंदी: केंद्र

अस्थाई कैंपो की जगह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और हॉस्पिटल में ही नसबंदी ऑपरेशन होगा ये बात गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कही. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि अस्थाई कैंपो में नसबंदी का ऑपरेशन बंद करे.

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  • August 4, 2016 5:58 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. अस्थाई कैंपो की जगह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और हॉस्पिटल में ही नसबंदी ऑपरेशन होगा ये बात गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कही. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि अस्थाई कैंपो में नसबंदी का ऑपरेशन बंद करे. नसबंदी या तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या फिर हॉस्पिटल में ही करे.
 
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केंद्र सरकार की तरफ से ये भी कहा गया कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गोवा और सिक्किम ने अस्थाई कैंपो में नसबंदी के आपरेशन को पूरी तरह से बंद कर दिया है. केंद्र सरकार ने इस बात को स्वीकार किया कि अस्थाई कैंपो में पर्यापत चिकित्सा सुविधा नहीं होती. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विस्तृत हलफनामा दायर कर बताया कि अस्थाई कैंपो में नसबंदी को कैसे बंद किया जाएगा.
 
महिलाओं के नसबंदी ऑपरेशनों में अस्वास्थ्यकर हालात और गए-गुजरे तरीके अपनाने के ख़िलाफ़ देविका बिस्वास की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. याचिका में कहा गया है कि देश में महिलाओं के नसबंदी शिविरों में अस्वास्थ्यकर तरीके अपनाए जाते हैं जिससे व्यक्ति का जीवन ही संकट में होता है. याचिका में कई उदाहरण दिए गए हैं जिसमें विशेषकर बिहार के अररिया जिले में एक स्कूल में कैंप लगाकर किए गए ऑपरेशनों का जिक्र है.
 
जनवरी में इस स्कूल में लगाए गये कैंप में दो घंटों में 53 महिलाओं की नसबंदी कर दी गई. आपरेशन से पहले न तो महिलाओं की काउंसलिंग की गई न ही पूर्व जांच आदि की गई.
 
याचिका के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा रमाकांत राय मामले में तय दिशा निर्देशों का पालन भी नहीं हो रहा है. देविका की मांग है कि जो घटनाएं याचिका में उजागर की गई हैं उनकी किसी स्वतंत्र संस्था से जांच कराई जाए और रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल हो. पूरे देश में जांच कर पता लगाया जाए कि रमाकांत राय मामले में कोर्ट द्वारा तय दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है कि नहीं. अगर जरूरत लगे तो कोर्ट नए दिशानिर्देश भी तय करे.

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