नई दिल्ली. मोदी सरकार ने स्ट्रेटजिक फोर्सेस कमांड को आरटीआई कानूनसे बाहर कर दिया है. स्ट्रेटजिक फोर्सेस कमांड परमाणु हथियारों की देख-रेख और संचालन का काम करती है. 2005 में आरटीआई कानून बनाने के समय कई संगठनों को इससे बाहर रखा गया था लेकिन एसएफसी छूट गया था.
2005 में यूपीए सरकार के समय में जब सूचना का अधिकार कानून बना था तो सीबीआई, रॉ, आईबी जैसी कुछ संस्थाओं को इससे बाहर रखा गया था लेकिन स्ट्रेटजिक फोर्सेस कमांड जैसी टॉप सीक्रेट संस्था को इससे बाहर नहीं किया गया था.
इसका सीधा सा मतलब यह था कि कोई भी आम शख्स मात्र 10 रूपय में आरटीआई लगा कर देश में मौजूद परमाणु हथियारों की जानकारी प्राप्त कर सकता था. जैसे ही यह मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एनएसए प्रमुख अजित डोभाल की नज़रों में पहुंचा उन्होंने एसएफसी को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर कर दिया.
सूचना के अधिकार का दूसरा अनुच्छेद उन संस्थाओं से सम्बन्ध रखता है जो आरटीआई कानून के दायरे में नहीं आती. अब स्ट्रेटजिक फोर्सेस कमांड का नाम भी रॉ, इंटेलिजेंस ब्यूरो, सी.बी.आई और फाइनेंशियल इंटेलिजेंस सरीखी उन 26 संस्थाओं की सूची में शामिल हो गया है जो सूचना के अधिकार के दायरे में नहीं आती.
स्ट्रेटजिक फोर्सेस कमांड का काम न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी को चलाना है जो प्रधानमंत्री के नियंत्रण में आती है. एनसीए की कार्यकारी परिषद का प्रमुख राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होता है जो पॉलिटिकल कॉउन्सिल को जरुरी जानकारी उपलब्ध कराता है.
यह काउंसिल जरूरत पड़ने पर परमाणु हमले का निर्णय लेती है. पॉलिटिकल कॉउंसिल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है और परिषद इसकी सलाहकार की भूमिका निभाती है.