नई दिल्ली. प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के सदस्य होने पर किसी शख्स को आतंकवादी करार देने का फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा चाहे वह व्यक्ति किसी आतंकी गतिविधि में शामिल हो या नहीं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक सोमवार को हुई सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने तीन जजों की बेंच के सामने कहा कि इन आदेशों को ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट भी मानने लगे हैं और पुराने आदेश को बदला जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि 2011 के जजमेंट में उल्फा के सदस्यों को रिहा किया गया था लेकिन केंद्र उनकी रिहाई को चुनौती नहीं दे रहा है लेकिन इन आदेशों पर सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर विचार करना चाहिए कि क्या प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होना किसी को आतंकी साबित नहीं करता.
असम सरकार ने भी कहा है कि इस जजमेंट की वजह से आतंकवाद में बढावा हो सकता है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जे एस खेहर की अगवाई वाली बेंच ने फरवरी 2011 अपने उस फैसले पर फिर से विचार करने का फैसला किया है जिसमें कहा गया था कि किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने भर से ही कोई व्यक्ति अपराधी नहीं हो जाता जब तक कि वो किसी हिंसा में शामिल ना रहा हो या लोगों को हिंसा के लिए उकसा रहा हो.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मारकंडेय काटजू और जस्टिस ज्ञानसुधा मिश्रा ने फरवरी 2011 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि किसी प्रतिबंधित संगठन का सदस्य होने भर से ही कोई व्यक्ति अपराधी नहीं हो जाता जब तक कि वो किसी हिंसा में शामिल ना रहा हो या फिर लोगों को हिंसा के लिए उकसा ना रहा हो.