नई दिल्ली. हाथों की लकीरों में अपने लिए लकीरें खींचने वाले लोग अपने आप में एक बड़ी मिसाल बन जाते हैं ? वे कुछ ऐसा करते हैं जिससे दूसरों में जीने की उम्मीद और हौसला दोनों पैदा होते हैं. ऐसे ही लोग संघर्ष को सही मायने देते हैं.
कुछ ऐसी ही कहानी है अभिनेता इरफान खान की. फिल्म सलाम बॉम्बे से फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले इरफान का कहना है कि शुरुआत में वह खुद ही खुद के लिए परेशानी थे. उन्होंने कहा, ‘जब फिल्मी सफर की शुरुआत की तब बहुत ज्यादा शंकाएं थी. अभिनेता बनने का भूत तो सवार हो गया था, लेकिन ऐसा काम जो आपके एरिया का नहीं है उसे करने में परेशानी होती है.’
7 जनवरी 1967 को जयपुर के एक जागीरदार परिवार में जन्मे इरफान ने साल 1984 में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया. उसके बाद बॉलीवुड में एक खास पहचान बनाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी. परिवार में कोई भी फिल्मी दुनिया से नाता नहीं रखता था, जिसके कारण इरफान को इस दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने में काफी समय लग गया.
काफी इंतजार और मेहनत के बाद इरफान ने मकबूल, रोग, लाइफ इन ए मेट्रो, स्लमडॉग मिलेनियम, पान सिंह तोमर और द लंच बॉक्स जैसी हिट फिल्में दीं. उन्हें तीन बार फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिल चुका है. इसके साथ ही पान सिंह तोमर के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया है. साल 2011 में पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है.
इंडिया न्यूज के खास शो ‘संघर्ष’ में मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत आपको बताएंगे कि इरफान के जीवन में क्या उतार-चढ़ाव आए. इसके साथ ही उन्होंने फिल्मों के इतिहास में अपना नाम कैसे दर्ज किया.