नई दिल्ली. फेसबुक या ट्वीटर जैसे फोरम पर सरकार या उसकी नीतियों की आलोचना या सरकार की खिल्ली उड़ाता कार्टून शेयर करने पर सरकारी बाबुओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का दरवाजा खुल गया है. नरेंद्र मोदी सरकार ने सोशल मीडिया पर इस तरह की एक्टिविटी को अधिकारियों की आचार संहिता का उल्लंघन बना दिया है.
सरकारी अधिकारियों की आचार संहिता में सरकारी नीति या सरकार की खुली आलोचना पर हमेशा से पाबंदी रही है लेकिन नियम में तकनीकी रूप से जो शब्द हैं वो अखबार, टीवी, रेडियो जैसे मीडिया को कवर करते थे. सरकार ने पाबंदी के कवरेज एरिया में सोशल मीडिया को भी शामिल करने का ड्राफ्ट तैयार करके राज्यों को भेज दिया है.
राज्यों की सहमति के बाद इसे लागू कर दिया जाएगा जिसके तहत आईएएस, आईपीएस, आईएफएस के अलावा तमाम तरह की नौकरशाही आ जाएगी.
नरेंद्र मोदी के खिलाफ फेसबुक पोस्ट लाइक करने पर डीएम की कुर्सी गंवाई है IAS गंगवार ने
हाल ही में मध्य प्रदेश के एक आईएएस अधिकारी अजय गंगवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना वाले एक फेसबुक पोस्ट को लाइक कर दिया था जबकि पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की तारीफ कर दी थी.
इसे अधिकारियों की आचरण नियमावली का उल्लंघन मानते हुए गंगवार को बड़वाणी के कलक्टर पद से हटाकर सचिवालय बुला लिया गया था और स्पष्टीकरण भी देने कहा गया था.
सरकार के खिलाफ बोलने पर अमेरिका-इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया के बाबू भी भुगतते हैं सज़ा
भारत के बाहर अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में भी सरकार की आलोचना करने वाले अधिकारियों को सज़ा मिलती है. 2011 में अनाम ट्वीटर एकाउंट से मंत्रियों की खिल्ली उड़ाने वाले एक अधिकारी को सात महीने लंबी जांच के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. 2012 में फेसबुक पर राष्ट्रपति बराक ओबामा की आलोचना करने पर अमेरिकी मैरीन के एक अधिकारी को नौकरी से हटा दिया गया.
2013 में ऑस्ट्रेलिया में एक महिला इमिग्रेशन अधिकारी की नौकरी इसलिए चली गई क्योंकि अनाम ट्वीटर एकाउंट से वो देश की शरणार्थी नीति की आलोचना कर रही थीं. अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के इन तीन उदाहरण को देखें तो कई बार भारत अधिकारियों के बोलने-कहने को लेकर ज्यादा खुला और उदार नज़र आता है.
2005 में चुनाव आयोग की आलोचना करने वाले केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को सज़ा के तौर पर सिर्फ उनके कैडर स्टेट में वापस भेज दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा फर्टिलाइजर सचिव वीएस पांडेय को 2014 में अपनी याचिका में सरकार में भ्रष्टाचार का जिक्र करने की वजह से लगने वाला जुर्माने से बचा लिया था.