नई दिल्ली. सच हो या वहम लेकिन कई बार लगता है कि हिन्दुस्तान ने पिछली रोटियां खाई हैं. पूरी दुनिया जिस परमाणु बिजली से पीछा छुड़ा रही है उसके पीछे हम मरे जा रहे हैं. पूरी दुनिया सूरज और हवा से बिजली बढ़ा रही है और हम अपने ही लोगों की जान जोखिम में डालकर न्यूक्लियर पावर प्लांट की जिद पकड़े बैठे हैं.
ये कोई वैचारिक बयानबाजी नहीं बल्कि
ब्लूमबर्ग 2015 न्यू ईनर्जी आउटलुक की रिपोर्ट का प्रामाणिक हिसाब-किताब है. आप जो ऊपर तस्वीर देख रहे हैं उसमें पीला वाला हिस्सा सोलर बिजली का है. पूरी दुनिया में 2015 से 2040 तक बिजली उत्पादन क्षमता में किस सेक्टर से कितनी नई क्षमता जुड़ेगी, ये उसका लेखा-जोखा है.
इस पूरे कालखंड में गौर करने वाली बात ये है कि सोलर बिजली 2015 में ही नई बिजली का तीसरा बड़ा स्रोत था और 2040 आते-आते तो वो इस सेक्टर पर राज करेगा. उसके ठीक नीचे लाल रंग में परमाणु बिजली है जिसकी हालत पतली है और आगे भी पतली ही रहने वाली है. परमाणु रिएक्टर से नई बिजली पैदा करने में दुनिया की दिलचस्पी नहीं दिख रही है.
मानो या ना मानो लेकिन परमाणु बिजली का राज ना है, ना आएगा
परमाणु बिजली के लिए सबसे अच्छा समय आएगा साल 2026 से 2028 के बीच जब दुनिया भर में बिजली उत्पादन क्षमता में 22 गीगा वाट नई बिजली की पैदाइश परमाणु रिएक्टरों से होगी. उसके पहले और उसके बाद उसकी हालत पूछो, ना पूछो जैसी है. 2040 में तो परमाणु बिजली की नई पैदावार 7 गीगावाट तक गिर जाने का अनुमान है.
भारत में अभी 7 न्यूक्लियर पावर प्लांट काम कर रहे हैं जिनके 21 रिएक्टर से तकरीबन 5780 मेगावाट बिजली निकलती है. परमाणु बिजली देश में बिजली पैदा करने के मामले में चौथा स्रोत है. सबसे पहले कोयला फिर पनबिजली और तीसरे नंबर पर नई तरह की ऊर्जा है जिसमें सोलर पावर या विंड पावर आते हैं. भारत में इस समय 4 परमाणु बिजली घर बन रहे हैं जबकि 12 प्रस्तावित हैं.
अमेरिका से असैनिक परमाणु करार हो या परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में सदस्यता के लिए प्राण-प्रतिष्ठा झोंक देने का सवाल, तमाम कूटनीतिक प्रयास का मकसद है, देश में परमाणु बिजली पैदावार को मजबूत करना. जहां-जहां प्लांट लग रहे हैं या लगाने का प्रस्ताव है, वहां के लोग सरकार के खिलाफ झंडा और डंडा दोनों उठाए बैठे हैं.
देश के अंदर इस ट्रेंड को ग्लोबल ट्रेंड को सामने रखकर जब समझने की कोशिश करते हैं तो मन में सहज सवाल उठता है कि परमाणु बिजली क्यों, जब दुनिया सोलर और विंड पावर से जरूरत पूरी करने की ओर बढ़ रही है.
2040 में सोलर पावर बिजली का सबसे बड़ा स्रोत होगा, विंड पावर भी मजबूत
समझ में ये नहीं आता कि जिस परमाणु बिजली में महज 5 गीगावाट की बढ़त 2015 में दर्ज हुई और जो 2040 में 7 गीगावाट की नई क्षमता पर ही लटकी रहेगी और इस बीच उसका सबसे स्वर्णिम काल 22 गीगावाट के साथ 2026-28 के बीच आएगा, उसके पीछे भारत की पुरानी और मौजूदा सरकारें क्यों फिदा हैं.
2015 में धरती पर बिजली पैदावार में जो नई क्षमता जुड़ी उसमें 52 गीगावाट सोलर और 62 गीगावाट हवा से पैदा हो रही है. मतलब 2015 में जितनी नई बिजली सोलर और विंड ईनर्जी से जुड़ी उससे 23 गुना कम बिजली परमाणु रिएक्टर से निकली.
2040 में 206 गीगावाट के साथ सोलर बिजली उस समय अकेले करीब-करीब आधा नई बिजली पैदा कर रही होगी. उस समय विंड ईनर्जी यानी हवा से पैदा हो रही नई बिजली भी 82 गीगावाट होगी. नई परमाणु बिजली उस समय 7 गीगावाट पर ठिठकी होगी.
नीचे इस ग्राफ में देखिए 2015 से लेकर 2040 तक परमाणु बिजली का हाल- 22 गीगावट वाली हाइलाइटेड लकीर
कोयला से पैदा होने वाली नई बिजली 2015 में 135 गीगावाट थी जो धीरे-धीरे घटेगी और 2040 के आते-आते 60 गीगावाट के आस-पास सिमट जाएगी. कोयला से पैदा होने वाली बिजली यानी थर्मल पावर ही इस सेक्टर में दुनिया भर में प्रदूषण की बड़ी वजह है. लेकिन ये साफ है कि उसका हिस्सा घट रहा है और वो 2040 तक आधे से कम हो जाएगा.
भारत की सरकारें परमाणु बिजली पर इस तरह से फिदा हैं कि उसकी घरेलू राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर इसका गहरा असर दिख रहा है. जिस परमाणु शब्द से लोगों की रूह कांपने लगती है उसके पीछे ऐसी दीवानगी क्यों, ये सरकार के नीति निर्माता ही जानें.
43 अरब डॉलर से 270 अरब डॉलर तक पहुंच गया है रेन्युएबल ईनर्जी में निवेश, चीन ने बाजी मारी
वैसे ये जानने के बाद इस बात को समझने में कुछ आसानी हो कि 60-70 के दशक में देश में कई कल-कारखाने ऐसे खुले जहां रूस से ऐसी मशीनें लाकर लगाई गईं जो खराब हो रही थीं या आउटडेटेड. क्या पता परमाणु बिजली के प्लेयर हमारे देश को ही डंपिंग ग्राउंड बनाना चाहते हों अपने मशीन, अपने रिएक्टर और अपने न्यूक्लियर प्रोसेस्ड फ्यूल के लिए.
2004 में रेन्युएबल ईनर्जी सेक्टर में जो निवेश 43 अरब डॉलर के आस-पास था वो 2014 आते-आते 270 अरब डॉलर सालाना हो गया. ये सुनकर हमें और बेचैनी होगी कि ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट का ये भी अनुमान है कि 2040 तक इस सेक्टर में होने वाला ज्यादातर निवेश चीन के पास जाएगा.
रिपोर्ट का अनुमान है कि पूरी दुनिया अगले 25 साल में 12.2 ट्रिलियन डॉलर का निवेश रेन्युएबल ईनर्जी में करेगी जिसका दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा सिर्फ सोलर और विंड पावर का होगा. सिर्फ छत पर सोलर प्लेट लगाने और जरूरत के लिए सोलर सिस्टम लगाने पर 3.7 ट्रिलियन डॉलर का खर्च होगा.
कुल मिलाकर बात ये है कि पूरी दुनिया सोलर और विंड पावर में निवेश कर रही है, ज्यादा से ज्यादा बिजली वहां से निकालने की कोशिश कर रही है तो हमारी सरकार क्यों परमाणु बिजली के पीछे समय, पैसा और राजनीति-कूटनीति की बलि चढ़ा रही है.
(न्यूज़ कॉपी 27 जून को दोपहर 2.50 बजे अपडेट की गई है)