नई दिल्ली. सम्राट अकबर या तो शुद्ध गंगा जल पीते थे या फिर अपने पानी में गंगा जल मिलाकर पीते थे. इतना ही नहीं जो भी मुग़ल बादशाह हुए वो भी गंगा जल की इस खासियत को मानते थे.
ये बात जल संसाधन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कही है. सुप्रीम कोर्ट उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदी पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन 24 पनबिजली परियोजनाओं पर रोक के मामले की सुनवाई कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर जल संसाधन मंत्रालय ने गंगा को संरक्षित करने और उसे प्रदूषण मुक्त बनाने की सरकार की प्रतिबद्धता जताते हुए गंगा नदी के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का भी बखान किया है.
गंगा जल की खूबियां गिनाते हुए कहा गया है कि दुनिया भर के लोगों का विश्वास है कि गंगा जल में कुछ ऐसे खास तत्व हैं जो किसी और नदी में नहीं है. इसके जल में बीमारियों से लडऩे की क्षमता है. गंगा नदी भारत की पहचान है. यह करीब 50 करोड़ लोगों के विश्वास और रोजीरोटी कमाने का साधन है.
जल संसाधन मंत्रालय ने हलफनामे में अलग अलग रिपोर्टों का हवाला देते हुए पनबिजली परियोजनाओं को नदी की सेहत के लिए नुकसानदेह और पर्यावरण के लिए खतरनाक बताया गया है. यहां तक कि 2012 और 2013 की उत्तराखंड बाढ़ को भी इसी से जोड़ा गया है.
नदी के जीवन के लिए उसमें अविरल प्रवाह बनाए रखने की जरूरत पर बल देते हुए कहा गया है कि ये प्रवाह सिर्फ देवप्रयाग के नीचे के हिस्से में ही नहीं बल्कि देवप्रयाग से ऊपर के हिमालय के हिस्से में भी रहना चाहिए ताकि पानी अपने पूरे वेग से नीचे नदी में आए और साल भर नदी में अविरल प्रवाह बना रहे. मंत्रालय का कहना है कि लंबित पनबिजली परियोजनाओं को मंजूरी उत्तराखंड त्रासदी से पहले दी गई थी.
दरअसल उत्तराखंड में जून, 2013 को आए जल प्रलय के बाद कोर्ट ने उत्तराखंड में अलकनंदा और भागीरथी नदी पर प्रस्तावित और निर्माणाधीन 24 पनबिजली परियोजनाओं पर रोक लगा दी थी.
अब कंपनियों ने रोक हटाने की मांग की है. इन परियोजनाओं में छह परियोजनाएं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की हैं. हालांकि पर्यावरण मंत्रालय ने कुछ शर्तो के साथ सार्वजनिक उपक्रमों की तीन परियोजनाओं को सशर्त मंजूरी की हामी भरी थी.