मेरी आंखों के सामने लोगों को जलाया, मुझे न्याय नहीं मिला: जाकिया

नई दिल्ली. एसआईटी कोर्ट ने 2002 के गोधरा कांड के बाद गुलबर्ग सोसाइटी में हुए दंगों के मामले में 24 आरोपियों की सजा का ऐलान हो गया है. जिनमें 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा, 12 दोषियों को 7 साल की सजा और एक को 10 साल की सजा हुई है. वहीं दूसरी तरफ कोर्ट के फैसले पर जकिया जाफरी ने कहा है कि मुझे पूरा न्याय नहीं मिला है. मैं सजा से संतुष्ट नहीं हूं. इन लोगों को बहुत कम सजा सुनाई गई है.

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मैं सजा से संतुष्ट नहीं: जकिया
कोर्ट के फैसले पर जकिया जाफरी ने कहा कि मैं इस सजा से संतुष्ट नहीं हूं. मुझे फिर तैयारी करनी होगी, वकीलों से राय लेकर आगे बढ़ना पड़ेगा. मुझे न्याय नहीं मिला. उन्होंने बताया कि सुबह 7 बजे से यह सब शुरू हुआ, मैं वहीं थी. मैंने सब अपनी आंखों से देखा. मेरे सामने इतनी बेरहमी से लोगों को जलाया गया. मेरे पति अहसान जाफरी को भी जला दिया गया. क्या ऐसे लोगों को इतनी कम सजा मिलनी चाहिए। यह गलत इंसाफ है, ज्यादातर लोगों को छोड़ दिया है. सभी को उम्रकैद की सजा दी जानी चाहिए.

लोगों को जलाया जिंदा
27 फरवरी 2002 को गोधरा के पास 59 लोगों की हत्या के एक दिन बाद अहमदाबाद के चमनपुरा इलाके के गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसक भीड़ ने हमला किया था. 28 फरवरी, 2002 को को हुए इस हमले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गये थे. एक प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, हमलावरों की संख्या करीब 20 हजार थी. इस सोसाइटी में 29 बंगले और 10 फ्लैट थे, जिसमें एक परिवार पारसी और बाकी सभी मुसलिम परिवार रहते थे . भीड़ ने करीब चार घंटे तक सोसाइटी में मारपीट की, लोगों को जिंदा जला दिया.
इस वजह से हुआ था गुलबर्ग कांड
गुलबर्ग सोसायटी कांड एक दिन पहले गोधरा के करीब साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक कोच को आग लगाए जाने की वीभत्स घटना का परिणाम था, जिसमें 58 लोग ट्रेन में जिंदा जल गए. इस घटना के एक दिन बाद 28 फरवरी, 2002 को हजारों लोगों की भीड़ ने चमनपुरा इलाके में स्थित गुलबर्ग हाउसिंग सोसायटी पर हमला किया और इसके 69 बांशिदों को मौत के घाट उतार दिया था. सोसायटी में अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते थे। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग बेमौत मारे गए थे.
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जानिये कब क्या हुआ
गुलबर्ग सोसाइटी केस की जांच सबसे पहले अहमदाबाद पुलिस ने शुरू की थी. 2002 से 2004 के बीच छह चार्जशीट दाखिल की गयी.
  • 8 जून, 2006 :  एहसान जाफरी की बेवा जकिया ने शिकायत दर्ज करायी, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, कई मंत्रियों और पुलिस अफसरों को जिम्मेवार ठहराया गया.
  • 7 नवंबर, 2007 : गुजरात हाइकोर्ट ने इस फरियाद को एफआइआर मान कर जांच करवाने से मना कर दिया.
  • 26 मार्च, 2008 : सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों (गुलबर्ग कांड समेत) की जांच के लिए आरके राघवन की अध्यक्षता में एक एसआइटी गठित की.
  • मार्च 2009 : फरियाद की जांच का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआइटी को सौंपा.
  • सितंबर,  2009 : ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड का ट्रायल शुरू.
  • 27 मार्च 2010 : नरेंद्र मोदी से एसआइटी ने पूछताछ की.
  • 14 मई, 2010 : एसआइटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी.
  • 8 फरवरी, 2012 : एसआइटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की.
  • 10 अप्रैल, 2012: मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने मोदी और अन्य 62 लोगों को क्लीनचिट दी.
  • 7 अक्तूबर, 2014 : सुनवाई के लिए जज पीबी देसाई की नियुक्ति.
  • 22 फरवरी, 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत को तीन महीने में फैसला सुनाने को कहा.

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