नई दिल्ली. लाभ के पद से संसदीय सचिवों को बाहर रखने का बिल राष्ट्रपति द्वारा ठुकराने के बाद अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता रद्द होगी या नहीं. अब ये चुनाव आयोग या कोर्ट तय करेगा. लाभ के पद को लेकर एक ऐसे ही मामले की सुनवाई 2006 में सुप्रीम कोर्ट में हुई थी. याचिका किसी और ने नहीं बल्कि सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी और पूर्व सांसद जया बच्चन ने दाखिल की थी.
दरअसल चुनाव आयोग को कांग्रेस के एक नेता मदनमोहन शुक्ला की ओर से एक शिकायत मिली थी जिसमें उन्होंने आयोग से जया बच्चन के लाभ के पद पर होने के कारण अयोग्य घोषित करने का अनुरोध किया था. चुनाव आयोग ने इस शिकायत को सही पाया था और कहा था की जया बच्चन राज्यसभा सांसद होते हुए भी उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन रही हैं जो लाभ का पद है. इसलिए उनकी राज्यसभा सदस्यता समाप्त कर दी जानी चाहिए.
चुनाव आयोग की सिफारिश को मानते हुए राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता खारिज कर दी थी. जिसके बाद जया बच्चन ने राष्ट्रपति के उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसके तहत उन्हें राज्यसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था.
जया बच्चन ने अपनी याचिका में कहा था कि चेयरमैन के पद पर रहते हुए उन्होंने वेतन नहीं लिया है इसलिए वो लाभ का पद नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने सांसद जया बच्चन कि याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि अगर कोई व्यक्ति लाभ के पद पर है भले ही वो सुविधा न ले फिर भी उसे लाभ के पद ही माना जायेगा. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आप पद से कोई लाभ ले न ले इससे कोई मतलब नहीं है इसे लाभ का पद ही माना जायेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने पाने फैसले में कहा था कि अगर कानून के मुताबिक उस पद पर सुविधाएं मिल यही है तो वो लाभ का पद माना जायेगा. हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा था की जब तक कानून के द्वारा अगर संसद इस पद को अलग नहीं करता तब तक वो लाभ का पद का माना जायेगा.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से 21 विधायकों की सदस्यता खतरे में पड़ सकती है. यही वजह है की केजरीवाल सरकार ने लाभ के पद से संसदीय सचिवों को बाहर रखने का बिल पास किया था. जिसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा था और राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था.
बता दें कि इन विधायकों को अयोग्य ठहराने के लिए बीते साल जून में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी याचिका दी गई थी. चुनाव आयोग ने विधायकों को 11 अप्रैल तक इस याचिका पर जवाब देने का समय दिया था. 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त करने का बीजेपी और अन्य पार्टियों ने विरोध किया था. विपक्ष का आरोप था कि इन 21 विधायकों को मंत्रियों की तरह सुविधाएं दी जाएंगी, जिससे दिल्ली की जनता पर बोझ पड़ेगा. 1993 में दिल्ली विधानसभा के दोबारा गठन के बाद से किसी भी सरकार में तीन से ज्यादा संसदीय सचिव नहीं रहे हैं.