SC का BSP नेता उमाकांत की याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार

नई दिल्ली. पूर्व सांसद उमाकांत यादव की याचिका पर जल्द सुनवाई से इंकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा की राजनीती में पहले से ही पर्याप्त दोषी लोग है. उमाकांत यादव ने कोर्ट से गुहार करते हुए मांग की थी कि उनकी दोषसिद्धि को निलंबित कर दिया जाए ताकी वो चुनाव लड़ सकें. मंगलवार को पूर्व सांसद उमाकांत यादव को एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से निराश हाथ लगी है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने उमाकांत यादव उस याचिका पर जल्द सुनवाई से इंकार कर दिया जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ सात साल की कैद की दोषसिद्धि को निलंबित करने कि मांग की है.

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क्या था मामला?
उमाकांत यादव को जौनपुर के खुटहन थाना क्षेत्र के दौलतपुर पिलकिछा गांव की एक महिला की जमीन को फर्जी ढंग से अपने नाम बैनामा कराने के मामले में जौनपुर कि निचली अदालत ने सात साल की कैद कि सजा सुनाई थी. पूर्व सांसद उमाकांत ने सुप्रीम कोर्ट में दलील कि वो छह साल दो महीने कि सजा काट चुके है. ऐसे में जब तक उनका मामला सत्र न्यायालय में लंबित है तब तक उनकी सजा को निलंबित कर दिया जाये.
उमाकांत यादव ने याचिका में क्या कहा?
उमाकांत यादव ने अपनी याचिका में कहा है कि वो तीन बार विधायक रह चुके है और एक बार सांसद रहे है. ऐसे में उत्तरप्रदेश में 2017 में होने वाले चुनाव वो लड़ना चाहते है. ये तभी संभव हो पायेगा जब सुप्रीम कोर्ट उनकी दोषसिद्धि को निलंबित कर दे, क्योंकि जन प्रतिनिधि कानून के तहत 2 साल से ज्यादा कि सजा पाये कोई भी विधायक और सांसद सजा पूरी होने के छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता.
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अभियोजन पक्ष के अनुसार
अभियोजन पक्ष के अनुसार खुटहन थाना क्षेत्र के दौलतपुर गांव निवासी गीता देवी पत्नी हरिश्चन्द्र यादव ने शाहगंज कोतवाली में दिसम्बर 2006 में एफआईआर दर्ज कराई थी. साल 1998 में राजाराम दुबे पुत्र भगेलूराम की जमीन का गीता ने अपने नाम बैनामा कराया था. उसी जमीन को उमाकांत ने फर्जी ढंग से अपने नाम बैनामा करा लिया. गीता ने आरोप लगाया था कि उनकी जगह वह राजाराम दुबे की पत्नी गीता दुबे को खड़ा करके बैनामा करा लिया है. पुलिस ने कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल किया था. गीता देवी, उनके पति हश्चिन्द्र व दिवाकर ने घटना का समर्थन किया. उमाकांत यादव के अधिवक्ता प्रदीप श्रीवास्तव ने पूर्व सांसद की तरफ से चार गवाह परीक्षित कराए. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने उमाकांत यादव को जालसाजी व कूटरचना के जरिए बैनामा कराने का आरोपित पाते हुए सात साल की कैद व 12 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनायी थी.
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