धनबाद. आधे हिंदुस्तान में पानी के लिए त्राहिमाम मचा है. नदियां, कुएं, नलों से पानी नहीं आंसू टपक रहे हैं. सच कहते हैं कि जल ही जीवन है. वरना दो बूंद पानी के लिए भला कोई जिंदगी दांव पर क्यों लगाता? वहां बस्तियों में वीरानी छा रही है और जो लोग वहां बचे हैं, वो आंसू पीने को मजबूर हैं. ये सिसकती कहानी है धनबाद की.
यहां जिंदगी पानी की तलाश में भटकती है. झारखंड के धनबाद में लोग पानी के लिए बीसीसीएल की उस खदान में प्रवेश कर रहते हैं, जिसे खतरनाक मान कर प्रबंधन 20 साल पहले बंद कर चुका है. इस खदान में रिस रहे पानी को डेगची में भर कर लाना, मौत से खेलने जैसा है. यह पानी की तड़प है, जो हर दिन दर्जनों महिलाओं को खदान के मुहाने पर खड़ा कर देती है. एक बाल्टी पानी के लिए वे खतरनाक खदानों और पथरीली राहों की यात्रा पर रोज निकलती हैं. लकड़ी के खंभे के सहारे टिकी चट्टानों के नीचे बैठ-बैठ कर चलना अपने आप में चुनौती है.
र्माबांध, देवघरा व बाबूडीह तीनों गांव आपस में सटे हुए हैं. इन तीनों गांवों की आबादी करीब 10 हजार है. यहां किसी समय 150 चापाकल व 25 तालाब हुआ करते थे. चापाकल का पानी पाताल में समा गया. चापाकल चलाने पर अब सिर्फ हवा निकलती है. 100 से 110 फीट बोरिंग पर भी पानी नहीं मिल रहा है.
बूंद बूंद पानी के लिए तरसते धनबाद के लोग खदान में पानी के लिए जाते हैं. इंडिया न्यूज़ के स्पेशल शो ‘अकाल पार्ट-6‘ में झारखंड के धनबाद से देखिए ग्राउंड रिपोर्ट.
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