खुद को जिंदा साबित करने जंतर मंतर पर धरने पर बैठा संतोष

जंतर- मंतर पर रोज़ाना सैकड़ों लोग धरने पर बैठे रहते हैं. ये सभी यहां न्याय की आस में प्रशासन के कानों तक अपनी बात पहुंचाने आते हैं. जंतर-मंतर पर एक ऐसा व्यक्ति भी है, जो सालों से खुद को ज़िंदा साबित करने के लिए बैठा है. अब हैरानी की बात ये है कि एक ज़िंदा इंसान जंतर-मंतर पर कई सालों से सिर्फ इसलिए धरने पर बैठा है, क्योंकि उसके परिजनों ने उसे मृत घोषित कर दिया है.

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खुद को जिंदा साबित करने जंतर मंतर पर धरने पर बैठा संतोष

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  • June 1, 2016 2:44 pm Asia/KolkataIST, Updated 8 years ago
नई दिल्ली. जंतर- मंतर पर रोज़ाना सैकड़ों लोग धरने पर बैठे रहते हैं. ये सभी यहां न्याय की आस में प्रशासन के कानों तक अपनी बात पहुंचाने आते हैं. जंतर-मंतर पर एक ऐसा व्यक्ति भी है, जो सालों से खुद को ज़िंदा साबित करने के लिए बैठा है. अब हैरानी की बात ये है कि एक ज़िंदा इंसान जंतर-मंतर पर कई सालों से सिर्फ इसलिए धरने पर बैठा है, क्योंकि उसके परिजनों ने उसे मृत घोषित कर दिया है.
 
खुद को जिंदा साबित करने की जिद पर अडा शख्स प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के चौबेपुर का रहने वाला 35 साल का संतोष मूरत सिंह है. संतोष बनारस के डीएम से लेकर यूपी के सीएम तक से कई बार गुहार लगा चुका है. लेकिन अभी तक वह जिंदा होकर भी कागजों में जिंदा नहीं है. 
 
नाना पाटेकर के रसोइए का काम कर चुका है संतोष
 
बता दें कि संतोष 2006 में मुंबई में नाना पाटेकर के रसोइए के तौर पर काम कर रहा था. उसी दौरान मुंबई में बम धमाके हुए. जिसके बाद वो कुछ समय के लिए लापता हो गया था. इसका फायदा उठाकर उसके 
चचेरे भाईयों ने संतोष को मृत घोषित कराकर फर्जी प्रमाणपत्र के सहारे उसकी जमीन को हथिया ली. जिसके बाद से पिछले 10 सालों में संतोष सभी से यहीं गुहार लगाता है कि मैं मरा नहीं हूं, मैं जिंदा हूं, मेरी मदद करिए. संतोष के न्याय की जंग में साथ देने के लिए नाना पाटेकर भी एक बार आ चुके हैं. 
 
गांव ने किया था सामाजिक बहिष्कार
 
संतोष 10 सालों से सरकारी कागज़ों में अपनी मौत के खिलाफ खुद को ज़िंदा साबित करने की लड़ाई लड़ रहा है. बनारस से मुंबई जाने पर एक दलित महिला से शादी करने के बाद उनके गांव के लोगों ने बिरादरी से बहिष्कार की घोषणा करके दूरी बना ली.  इस सामाजिक बहिष्कार के बाद जिंदा होने की लड़ाई में गांव के लोग भले ही उसके साथ नहीं है, लेकिन वह अपने दम पर ही 10 साल से संघर्ष कर रहा है. जिंदा होने के लिए एक बार उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए भी नामांकन किया लेकिन पर्चा तकनीकी कारणों से मंजूर नहीं हो सका. उसके बाद 2012 में जंतर-मंतर पर धरना दे चुका है.
 
 
मुंबई प्रशासन ने निरस्त किया मृत्यु प्रमाणपत्र 
 
बताया जा रहा है कि मुंबई बम धमाके में एक लावारिश लाश की उसके चचेरे भाइयों ने संतोष के रुप में शिनाख्त कर दी. और फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र के आधार पर बनारस में उसकी जमीन व मकान अपने नाम करा लिये. अपनी गलती का पता चलने पर मुंबई प्रशासन ने अपने उस आदेश को निरस्त कर दिया था. जिसमें उसे मुंबई ब्लास्ट के दौरान मृत बताया गया था. इसके बाद भी अभी तक संतोष को ज़मीन और घर वापस नहीं मिले हैं. वहीं इस मामले में संतोष का कहना है कि जबतक उसे न्याय नहीं मिल जाता है वो धरना जारी रखेगा. 
 
डीएम बोले गंभीर मामला है इसकी जांच होगी 
 
इस 10 साल पुराने मामले में बनारस के जिलाधिकारी का कहना है कि मामला गंभीर है. इसकी जांच करायी जाएगी कि किस आधार पर मृत घोषित करके जमीन दूसरे को दे दी गई. साथ ही पीडित को न्याय दिलाया जाएगा.

 

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