नई दिल्ली. उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश की राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था के लिए आज का दिन ऐतिहासिक है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उत्तराखंड विधानसभा में हरीश रावत का बहुमत परीक्षण हुआ, जिसमें 61 विधायकों ने वोटिंग की. कांग्रेस के 9 बाग़ी विधायकों को वोटिंग से दूर रखने का आदेश सुप्रीम कोर्ट पहले ही दे चुका था.
उत्तराखंड के संकट की शुरुआत दल-बदल से हुई और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बहुमत परीक्षण के दौरान भी दल-बदल का खेल चलता रहा. कांग्रेस के बचे-कुचे 27 विधायकों में से एक रेखा आर्य ने पाला बदला, तो बीजेपी से निलंबित विधायक भीमलाल आर्य ने कांग्रेस का समर्थन किया.
विधानसभा में सुप्रीम कोर्ट के ऑब्जर्वर ने वोटिंग के बाद फैसला सीलबंद लिफाफे में रखा. ये लिफाफा कल सुप्रीम कोर्ट में खुलेगा और सुप्रीम कोर्ट में ही तय होगा कि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन जारी रहेगा या फिर हरीश रावत को फिर से सत्ता मिलेगी?
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को दो घंटे के लिए सस्पेंड करके ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पास अब भी बहुमत है? साथ ही सवाल उठ रहा है कि लोकतंत्र को सुप्रीम कोर्ट की पनाह क्यों लेनी पड़ी? इंडिया न्यूज के खास शो बीच बहस में पेश है इस अहम मुद्दे पर चर्चा.
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