नई दिल्ली. भारत में बनी पहली स्कार्पीन कैटेगरी की छह सबमरीन में से पहली आईएनएस कल्वरी को समुन्द्र में टेस्टिंग के लिए उतारा गया.चीन, पाकिस्तान के समंदर के रास्ते पर नजर रखने के लिए कल्वरी अहम साबित हो सकती है. फिलहाल कल्वरी पर हैवीवेट टॉरपीडो को नहीं ले जाया सकता. सितंबर के अंत तक इसके नेवी में शामिल होने की पॉसिबिलिटी है.
कल्वरी में क्या है खास
डीजल-इलेक्ट्रिक पावर से चलने वाली कल्वरी लंबाई 66 मीटर है. कल्वरी रविवार को मुंबई तट से रवाना हुई. 2015 में मनोह पर्रिकर की मौजूदगी में मझगांव डॉकयार्ड में इसे पानी में उतारा गया था. नौसेना के एक अफसर ने बताया, ‘यह हमारे लिए गर्व का पल है. इस कैटेगरी की पांच अन्य सबमरीन को हर नौ महीने पर रवाना किया जा सकता है.’
नेवी के सूत्रों के मुताबिक, ये अक्टूबर 2005 में डिफेंस मिनिस्ट्री की ओर से फ्रांस की कंपनी डीसीएनएस के साथ किए गए 3.6 अरब डॉलर (लगभग 19.92 करोड़ रुपए) के करार का हिस्सा है. इस कैटेगरी की पांच और सबमरीन डीसीएनएस के सहयोग से भारत में बनाई जा रहीं हैं. भारत इनके बाद दो और सबमरीन को शामिल करने की कोशिश करेगा.नेवी के पास अभी 14 सबमरीन हैं.
भारत के लिए क्यो जरूरी है ये सबमरीन?
पाकिस्तान, चीन की तरफ से खतरे को देखते हुए भारत के पास मॉडर्न सबमरीन होना जरूरी है. कल्वरी एंटी शिप मिसाइल SM-39 दागने में कैपेबल है. हालांकि कल्वरी में भारी टॉरपीडो (सबमरीन से मार करने वाली मिसाइल) को नहीं ले जाया सकता. सूत्रों की मानें तो अभी कल्वरी वैसी ही है जैसे गोली के बिना बंदूक.
इटली से 1800 करोड़ कीमत के ‘ब्लैक शार्क’ टॉरपीडो लिए जाने का मसला हेलिकॉप्टर डील के चलते फंसा हुआ है. ब्लैक शार्क टॉरपीडो सप्लाई फिनमैक्केनिका की ही एक कंपनी ‘व्हाइटहेड एलेनिया सिस्टेमी सबएक्वल’ करने वाली है.