नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम. केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होनी है. याचिका में कहा गया है कि मंदिर में महिलाओं को प्रवेश ना करने देना उनके साथ भेदभाव करना है.
बता दें कि केरल सरकार ने भी मंदिर प्रशासन के समर्थन में कहा था कि धार्मिक मान्यताओं की वजह से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी जा सकती. भगवान अयप्पा को ब्रह्मचारी और तपस्या लीन माना जाता है.
इससे पहले केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन होने के खिलाफ दाखिल याचिका पर पिछले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल किया कि क्या आप पीरियड्स को महिलाओं की पवित्रता से जोड़ रहे हैं? क्या शरीर की बायलॉजिकल अवस्था को भेदभाव की पूर्व शर्त बनाया जा सकता है?’ बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मंदिर सार्वजनिक धार्मिक स्थल हैं. मंदिर भी संवैधानिक दायरों के अंतर्गत ही आते हैं.
बता दें कि सबरीमाला मंदिर में परंपरा के अनुसार, 10 से 50 साल की महिलाओं की प्रवेश पर प्रतिबंध है. मंदिर ट्रस्ट की मानें तो यहां 1500 साल से महिलाओं की प्रवेश पर बैन है. इसके लिए कुछ धार्मिक कारण बताए जाते रहे हैं. केरल के यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने बैन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 2006 में पीआईएल दाखिल की थी. करीब 10 साल से यह मामला कोर्ट में अधर में लटका हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या कहा था?
इससे पहले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट से पूछा था, ‘जब वेदों, उपनिषदों या किसी भी शास्त्र में महिला और पुरुषों में भेदभाव नहीं तो सबरीमाला में क्यों है? मंदिर में महिलाओं के प्रवेश कब बंद हुआ और इसका क्या इतिहास है?’
जस्टिस दीपक मिश्रा की बैंच ने कहा था महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने से नहीं रोका जा सकता है. कोर्ट ने कहा था कि मंदिर बोर्ड की इस दलील पर भरोसा नहीं किया जा सकता है कि यहां 1500 साल से मंहिलाओं के प्रवेश पर रोक है.
शनि शिंगणापुर मंदिर का फैसला महिलाओं के पक्ष में
पिछले दिनों महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर में 400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए महिलाओं को प्रवेश और पूजा की इजाजत दे दी है. ऐसे में सबरीमाला मंदिर को लेकर सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं.