नई दिल्ली. केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन होने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सवाल किया कि क्या आप पीरियड्स को महिलाओं की पवित्रता से जोड़ रहे हैं? क्या शरीर की बायलॉजिकल अवस्था को भेदभाव की पूर्व शर्त बनाया जा सकता है?’ बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मंदिर सार्वजनिक धार्मिक स्थल हैं. मंदिर भी संवैधानिक दायरों के अंतर्गत ही आते हैं.
कोर्ट की प्रतिक्रिया पर वेणुगोपाल ने दलील दी की इस मंदिर की शनि मंदिर से तुलना नहीं कर सकते, जहां महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह से प्रतिबंधित है. सबरीमाला मंदिर में ऐसा पूर्ण बैन नहीं है. 10 साल से कम उम्र की बच्चियों और 50 से अधिक उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन नहीं लगाया गया है.
मंदिर में 41 दिनों की पूजा की प्रक्रिया पर बहस चल रही थी. मंदिर ट्रस्ट के वरिष्ट वकील केके वेणुगोपाल ने कहा कि महिलाओं पर यह प्रकिया लागू नहीं होती. महिलाएं इसके दायरे से बाहर है.
वेणुगोपाल की दलील थी कि मंदिर ट्रस्ट पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि लिंग के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है. उन्होंने तर्क दिया कि मंदिर में महिलाओं पर जो बैन लगाया जाता है वह न्यायोचित है. अगर कोई विज्ञापन आता है कि अस्पताल के लिए फीमेल नर्स की जरुरत है तो क्या यह भेदभाव है.
मंदिर में महिलाओं को किया गया बैन लिंग के आधार पर भेदभाव का मामला नहीं है. यह न्यायोचित वर्गीकरण है. यह मामला पूजा और आस्था से जुड़ा है और भगवान वहां ब्रह्मचारी हैं.