27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा जंक्शन पर खड़ी साबरमती एक्सप्रेस की बोगी नंबर एस-6 में भीड़ ने आग लगा दी थी, जिसके बाद पूरे राज्य में दंगे भड़क गए.
नई दिल्ली. करीब 16 साल पहले गुजरात के पंचमहल जिले के गोधरा को गायों और गरबा की जमीन कहा जाता था. लेकिन 27 फरवरी 2002 में गोधरा को बाहरी लोगों से एक नई पहचान मिली. अब इसे दंगे के लिए जाना जाता है, जिसमें 59 लोगों की जान चली गई. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक सुबह 7.45 मिनट पर साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन पर आई. यह ट्रेन उस वक्त अहमदाबाद को बिहार के मुजफ्फरपुर से जोड़ती थी और अयोध्या के अलावा उत्तर प्रदेश के कई अहम शहरों से गुजरती थी. उस वक्त सैकड़ों की तादाद में कारसेवक (स्वयंसेवक) अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद् के पूर्णआहूति यज्ञ में हिस्सा लेने गए थे.
लेकिन जैसे ही ट्रेन गोधरा रेलवे स्टेशन से निकलने लगी, ड्राइवर ने अपने बयान में कहा कि कई बार इमरजेंसी चेन खींचकर ट्रेन को आउटर सिग्नल पर रोकने की जबरन कोशिश की गई. पुलिस के मुताबिक करीब 2000 लोगों की भीड़ ने ट्रेन की बोगी पर पत्थराव किया और 4 कोच को आग लगा दी. इस हादसे में करीब 59 लोग मारे गए, जिसमें 27 महिलाएं और 10 बच्चे शामिल थे. जबकि 48 लोग घटना में घायल हुए थे. कोच नंबर एस-6 को हमले का निशाना बनाया गया. गोधरा स्टेशन पर हुई इस घटना के बाद गुजरात में अगले ही दिन (28 फरवरी) दंगे फैल गए. हालांकि उस वक्त नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली गुजरात सरकार ने दावा किया कि उसने तीन दिन के भीतर ही स्थिति पर काबू पा लिया था, लेकिन राज्य में दो-तीन महीने तक दंगे जारी रहे थे.
गुजरात दंगों के बाद मरने वालों की संख्या राज्य सरकार ने राज्य सभा में बताई थी. साल 2005 में गुजरात सरकार ने कहा कि 790 मुस्लिम और 254 हिंदू को अपनी जान गंवानी पड़ी और 223 लोगों लापता रहे. करीब 24 मुस्लि और 13 हिंदू पुलिस फायरिंग में मारे गए. लेकिन सिविल राइट्स एक्टिविस्ट्स और एनजीओ ने 2002 के गुजरात दंगों में मरने वालों की तादाद 2000 से ऊपर बताई थी.
राज्य सरकार ने जस्टिस जीटी नानावटी की अगुआई वाली एक कमिटी का गठन किया, जिसमें जस्टिस केजी शाह भी सदस्य थे. कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि मरने वालों में ज्यादातर लोग कारसेवक और श्रद्धालु थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे. जबकि गुजरात के गांधीनगर स्थित फॉरेंसिक स्टडीज लेबोरेटरी (एफएसएल) के मोहिंदर सिंह दहिया (एफएलएल के तत्कालीन असिस्टेंट डायरेक्टर) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया कि कोच-6 में अंदर से आग लगाई थी. एफएसएल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सीट नंबर 72 पर खड़े किसी शख्स ने एक कंटेनर खोला और ज्वलनशील पदार्थ डालकर बोगी में आग लगा दी. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यह किसी अंदर बैठे शख्स का किया भी हो सकता है.
2004 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो एक अन्य जांच कमिशन जस्टिस यूसी बनर्जी की अगुआई में गठित किया गया. इसने गोधरा आगजनी को ‘एक हादसा’ बताया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस कमिशन को असंवैधानिक करार देकर रिपोर्ट को अवैध ठहरा दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा रेल आगजनी और गुजरात दंगों की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया. इस बीच जस्टिस शाह की मार्च 2008 में मौत हो गई और उनकी जगह नानावटी कमिशन में जस्टिस अक्षय मेहता ने ली. जस्टिस नानावटी और मेहता ने 2008 में सौंपी रिपोर्ट में कहा कि गोधरा ट्रेन आगजनी एक साजिश थी. इस हादसे के 7 वर्ष बाद जून 2009 में मुकदमा शुरू हुआ. दो साल बाद अहमदाबाद की फास्ट ट्रैक अदालत ने 31 लोगों को दोषी ठहराया और 63 लोगों को बरी कर दिया. कोर्ट भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि यह अचानक हुआ भीड़ का हमला नहीं था, बल्कि साजिश थी.
गोधरा रेल आगजनी में जिन लोगों को दोषी ठहराया गया था, उनमें 11 को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. पिछले साल अक्टूबर में गुजरात हाई कोर्ट ने 11 लोगों की फांसी की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया , जबकि अन्य की सजा को बरकरार रखा. इसलिए 31 लोगों को गोधरा ट्रेन आगजनी में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है.
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