नई दिल्ली: रेप के बाद जन्म लेने वाले बच्चों के भविष्य और परवरिश को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। इस संबंध में अदालतों ने समय-समय पर कई निर्देश दिए हैं। हालांकि आज के समय में भी यह एक बड़ा प्रश्न है कि रेप की शिकार हुई महिलाएं प्रेग्नेंट हो जाए तो उनके बच्चों की […]
नई दिल्ली: रेप के बाद जन्म लेने वाले बच्चों के भविष्य और परवरिश को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। इस संबंध में अदालतों ने समय-समय पर कई निर्देश दिए हैं। हालांकि आज के समय में भी यह एक बड़ा प्रश्न है कि रेप की शिकार हुई महिलाएं प्रेग्नेंट हो जाए तो उनके बच्चों की ज़िम्मेदारी कौन उठाएगा? आइए जानते है इस गंभीर मुद्दे पर कानून का क्या फैसला रहा है।
साल 2023 में गुजरात में एक 16 साल की नाबालिग लड़की जो रेप का शिकार हुई थी, 7 महीने की गर्भवती पाई गई। उसके पिता ने अबॉर्शन के लिए गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने पीड़िता लड़की के पिता की याचिका को खारिज कर दिया। जज ने यह तर्क दिया कि 17 साल की उम्र में लड़कियों के लिए मां बनना आम बात है और रेप पीड़िता को मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दी। इसके अलावा जज ने कहा कि अगर लड़की और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं, तो गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस तरह के मामले अदालतों में लगातार आते रहते हैं, जिससे सवाल उठता है कि रेप से जन्मे बच्चों की परवरिश कौन करता है?
रेप के बाद जन्मे बच्चों के लिए अदालतों ने कुछ निर्देश जारी किए हैं। नवंबर 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि नाबालिग से रेप के बाद जन्मे बच्चे का उसके पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा। दिसंबर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसे बच्चों के लिए अलग मुआवजे का आदेश दिया था। वहीं अप्रैल 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िताओं के बच्चों के लिए एक विशेष पॉलिसी बनाई जानी चाहिए। ऐसी ही एक घटना पर साल 2022 फरवरी में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक रेपिस्ट को अपने बच्चे को 2 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया था।
भारत में फिलहाल रेप से जन्मे बच्चों की परवरिश के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (CWC) इन बच्चों की देखभाल का निर्णय लेती है। यदि पीड़िता और उसके परिवार ने बच्चे को पालने से मना कर दिया, तो कमेटी उसे ‘चाइल्ड इन नीड ऑफ केयर एंड प्रोटेक्शन’ के तहत राज्य सरकार की कस्टडी में शेल्टर होम भेज देती है। प्रारंभिक देखभाल के बाद, बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू की जाती है, जिसमें केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण (CARA) की मदद ली जाती है। इस तरह के मामलों में सामाजिक और कानूनी हिफ़ाज़त ज़रूरी है, ताकि रेप के बाद जन्मे बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके।
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