कन्हैया के बयान पर भड़की किरण, पूछा- क्या जमीर बिल्कुल मर गया है?

नर्इ दिल्ली. जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार अपने दंगों वाले बयान को लेकर बीजेपी सांसद किरण खेर के निशाने पर आ गए है. दरअसल कन्हैया कुमार ने गुजरात दंगों और सिख दंगों को एक दूसरे से अलग-अलग परिभाषित किया था. सांसद किरण खेर ने ट्वीट कर कन्हैया से पूछा है कि क्या आपका जमीर मर गया है? किरण ने लिखा कि कन्हैया के माता-पिता गरीबी में जी रहे हैं. वह 28 साल का हो गया है और पीएचडी करने के नाम पर जेएनयू में जमा बैठा है.
‘अपने मां-बाप की स्थिती सुधारें’
एक्टर अनुपम खेर की पत्नी और बीजेपी सांसद किरण ने ट्वीट के जरिए कहा कि कन्हैया को यहां राजनीति नहीं बल्कि नौकरी कर अपने माता-पिता की स्थिति सुधारनी चाहिए. राजनीति तो वो बाद में भी कर सकता है. किरण ने कहा कि कन्हैया जैसे लोग सच्चाई से कोसों दूर हैं, उन्हें ये शायद पता ही नहीं कि वर्ष 1984 के सिख दंगों के मामले में वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ कोर्ट में मुकदमा चला है. किरण खेर ने इससे संबंधित कई ट्वीट भी किए हैं.

विवाद बढ़ता देख कन्हैया ने दी सफाई
विवाद बढ़ता देख मंगलवार रात को फेसबुक पर कन्हैया ने अपने बयान पर सफाई दी. उन्होंने कहा- “उनके बयान को गलत समझा गया है. 1984 और 2002 के दंगे स्टेट स्पॉन्सर्ड थे.”
क्या कहा था कन्हैया ने?
कन्हैया ने कहा था कि 1984 का सिख विरोधी दंगा ‘भीड़ के नेतृत्व में नरसंहार’ था जबकि 2002 गुजरात दंगा एक ‘राज्य प्रायोजित हिंसा’ थी. गुजरात में 2002 में हुए दंगों और 1984 के सिख विरोधी दंगों में फर्क होने पर जोर देते हुए कन्हैया कुमार ने आरोप लगाया कि गुजरात हिंसा सरकारी मशीनरी की मदद से की गई जबकि दूसरा भीड़ के उन्माद में हुआ. बाद में साल 1984 के सिख विरोधी दंगों पर अपने बयानों के लिए आलोचना का सामना कर रहे जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार नुकसान की भरपाई की कोशिश करते नजर आए और कहा कि वह हर नरसंहार के खिलाफ लड़ेंगे.
दिल्ली के जंतर मंतर पर जुलूस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘हम नरसंहार के खिलाफ लड़ेंगे चाहे बथनी टोला नरसंहार हो, 1984 का दंगा हो या फिर 2002 का दंगा. हम साथ मिलकर उसके खात्मे के लिए लड़ेंगे और हम सुनिश्चित करेंगे कि न्याय और समाज के पक्ष में यह खत्म हो.
कन्हैया ने कहा था, ‘भीड़ की ओर से आम लोगों का मर्डर करने और सरकारी मशीनरी की मदद से नरसंहार करने में फर्क है. ऐसे में मौजूदा समय में हमारे सामने सांप्रदायिक फासीवाद का खतरा है. खासकर जिस तरह विश्वविद्यालयों में हमले किए जा रहे हैं, वह बेहद की खतरनाक है. यह बहुत कुछ जर्मनी के तानशाह हिटलर के रास्ते पर चलने जैसा है.’
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