नई दिल्ली. आज हम जिस आजाद हवा में सांस ले रहे हैं, उसके लिए लाखों लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी है. इन्हीं शहीदों में से एक नाम भगत सिंह का है, जिन्होंने सेंट्रल एसेंबली में बम पटककर बहरे अंग्रेजों को हिंदुस्तान की आवाज सुनने को मजबूर कर दिया था.
भगत सिंह का नाम हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों देशों में बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है, और हमेशा लिया जाता रहेगा. लेकिन बदले वक्त में भगत सिंह की शहादत को नई परिभाषा देने की कोशिश शुरू हो गई है.
महज 23 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए फांसी चढ़ जाने वाले भगत सिंह की तुलना उस शख्स से की जा रही है. जो देश के खिलाफ नारेबाजी को बढ़ावा देने और खुद भी नारेबाजी करने का आरोपी है. ये तुलना कितनी जायज है, बीच बहस में आज हम इसी मुद्दे चर्चा करेंगे.
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