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Cauvery Water Dispute: 150 वर्ष पुराना कावेरी जल विवाद जिसमें शामिल हैं 3 राज्यों की सीमा

नई दिल्ली: इस समय कावेरी जल विवाद को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन तेज है जहां आज बेंगलुरु पूरी तरह से बंद रहेगा. बीते दिनों तमिलनाडु के त्रिची में भी किसानों ने नदी का पानी छोड़े जाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था. कर्नाटक के मांड्या में भी कन्नड़ समर्थक संगठनों […]

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Cauvery Water Dispute: 150 वर्ष पुराना कावेरी जल विवाद जिसमें शामिल हैं 3 राज्यों की सीमा
  • September 26, 2023 11:03 am Asia/KolkataIST, Updated 1 year ago

नई दिल्ली: इस समय कावेरी जल विवाद को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन तेज है जहां आज बेंगलुरु पूरी तरह से बंद रहेगा. बीते दिनों तमिलनाडु के त्रिची में भी किसानों ने नदी का पानी छोड़े जाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया था. कर्नाटक के मांड्या में भी कन्नड़ समर्थक संगठनों के साथ-साथ आंदोलन कर रहे हैं. कर्नाटक सरकार तर्क दे रही है कि उनके पास पड़ोसी राज्य को भेजने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है. इस बीच एक सवाल ये भी है कि क्या कावेरी नदी में पानी की कमी है. आइए जानते हैं कि क्या है ये पूरा विवाद जो पिछले 150 सालों से तीन राज्यों के दहलीज पर अड़ा हुआ है.

क्या है पूरा विवाद?

दरअसल ये विवाद 1892 जितना पुराना है जहां 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों में इसकी नींव को खोजा जा सकता है. कर्नाटक और तमिलनाडु के लोगों के लिए कावेरी जल बंटवारा विवाद भावनात्मक मुद्दा बना हुआ है. जल बंटवारे की क्षमता पर तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुडुचेरी के बीच केंद्र सरकार ने असहमति को दूर करने के लिए साल 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) की स्थापना की थी.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना जिसके अनुसार कर्नाटक को जून और मई के बीच ‘सामान्य’ जल वर्ष में तमिलनाडु को 177.25 टीएमसी आवंटित करने का आदेश दिया गया. जून से सितंबर तक इस साल कर्नाटक को कुल 123.14 टीएमसी मुहैया कराना था. हालांकि अगस्त महीने में 15 दिनों के लिए तमिलनाडु ने 15,000 क्यूसेक पानी मांगा. हालांकि सीडब्ल्यूएमए द्वारा 11 अगस्त तक पानी की मात्रा घटाकर 10,000 क्यूसेक कर दी गई. अब स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार का आरोप है कि कर्नाटक ने 10,000 क्यूसेक भी पानी नहीं छोड़ा है.

 

सर्वोच्च न्यायालय और सीडब्ल्यूएमए

18 सितंबर को CWMA ने अगले 15 दिनों तक कर्नाटक से तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ना जारी रखने को कहा था. इस बीच दोनों राज्यों के आवेदन सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिए हैं। दरअसल ये आवेदन सीडब्ल्यूएमए और सीडब्ल्यूआरसी के उस आदेश में हस्तक्षेप से जुड़े थे जिसमें कर्नाटक को तमिलनाडु के लिए 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया गया था. शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. इसके बाद राज्य में अलग-अलग जगह पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया.

 

क्या है कर्नाटक की स्थिति?

इस मामले में कर्नाटक पहले ही साफ़ कर चुका है कि वह इस समय पानी छोड़े जाने की स्थिति में नहीं है. क्योंकि इस साल मानसून में कम बारिश हुई है जिस कारण कावेरी बेसिन क्षेत्रों में फसलों की सिंचाई के लिए पानी की उसकी अपनी जरूरतें भी हैं. शीर्ष अदालत से संपर्क कर कर्नाटक ने सीडब्ल्यूएमए को तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक पानी छोड़ने के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्देश देने की मांग की थी. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और शिवकुमार ने इस बारे में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से दिल्ली में मुलाकात कर उन्हें अपनी असमर्थता भी बताई थी.

दोनों राज्यों में क्यों हो रहा है विरोध?

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए जहां विभिन्न हिस्सों में नाराज किसानों और कन्नड़ समर्थक संगठनों ने पानी छोड़ने पर अदालत का आदेश ना मानने की मांग की. मैसूरु, मांड्या, बेंगलुरु और चामराजनगर में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया. चामराजनगर में प्रदर्शनकारी किसानों ने राजमार्ग को अवरुद्ध करने की कोशिश की.कर्नाटक की मांग के अनुसार तमिलनाडु सरकार ने बातचीत की किसी भी गुंजाइश से इनकार कर दिया है. राज्य के जल संसाधन मंत्री दुरईमुरुगन ने कहा है कि ये लड़ाई कई वर्षों से चली आ रही है इसलिए इसपर बातचीत की कोई गुंजाईश नहीं है.

 

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