सुप्रीम कोर्ट में आज बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की उस याचिका की सुनवाई होगी जिसमें इलाहबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है. जिसमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत अन्य नेताओं के ऊपर से क्रिमिनल चार्ज को हटा दिया गया था.
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में आज बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की उस याचिका की सुनवाई होगी जिसमें इलाहबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है. जिसमें बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत अन्य नेताओं के ऊपर से क्रिमिनल चार्ज को हटा दिया गया था.
बाबरी विध्वंस से जुड़े दो मामले में हैं. एक तो अडवाणी और अन्य नेताओं के खिलाफ है. जिसमें 6 दिसंबर 1992 को अडवाणी, जोशी, उमा भारती और अन्य नेता अयोध्या के राम कथा मंच पर भडकून भाषण दे रहे थे. दूसरा सैकड़ों कार्यकर्ताओं के खिलाफ है जो विवादित ढांचे के आस-पास एकत्रित थे.
दोनों मामलों में सीबीआई ने आपराधिक चार्जशीट दायर की थी. अडवाणी और 20 अन्य के खिलाफ धारा 153A (दो समुदायों में विद्वेष फैलाना), 153B (देश की एकता को तोड़ने की साजिश रचना) और 505 (झूठे बयान, अफवाह फैलाकर शांतिभंग करना) के तहत आरोपी बनाया था.
राम मंदिर से जुड़े दो मामलों की सुनवाई भी आज
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को बीजेपी लीडर सुब्रह्मण्यम स्वामी की उस याचिका पर सुनवाई करेगी जिसमें उन्होंने रामजन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए अनुमति मांगी है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट उस मामले की भी आज सुनवाई करेगी जिसमें इलाहबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गयी है जिसमे कहा गया था कि भगवान राम का जन्म वहीँ हुआ था जहां आज मेकशिफ्ट राम मंदिर है.
सितम्बर 2010 में इलाहबाद हाईकोर्ट तीन सदस्यों वाली बेंच ने यह फैसला दिया था कि भगवान राम का जन्म वहीँ हुआ था, जहां आज रामलला का अस्थायी मंदिर है और हिन्दुओं को वहां राम मंदिर बनाने का पूरा अधिकार है.
हालांकि इलाहबाद हाई कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने लागू करने पर रोक लगा दी थी. स्वामी ने इस मामले की सुनवाई लंबित होने को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की कि यह देरी उन्हें संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार का हनन है. क्योंकि वह वहां पर पूजा नहीं कर पा रहे हैं.
उन्होंने निवेदन किया कि कोर्ट केंद्र सरकार से कहे कि वे वहां हिन्दुओं को मंदिर बनाने की अनुमति दे. उन्होंने अपने याचिका में कहा है कि इलाहबाद हाई कोर्ट की बेंच ने भी यह माना है कि वहां पर मंदिर था.