लखनऊ. कांग्रेस से राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष पन्नालाल पुनिया ने मुजफ्फरनगर दंगा मामले में न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग द्वारा राज्य की अखिलेश यादव सरकार को क्लीनचिट दिए जाने को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि जस्टिस सहाय जैसे अच्छे व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं थी. बाराबंकी में उन्होंने जस्टिस सहाय को एक अच्छा व्यक्ति बताया और आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी, सपा और बसपा में से किसी से गठबंधन न करने की बात कही.
पुनिया ने कहा कि किसी भी तरह से प्रदेश सरकार को मुजफ्फरनगर दंगा मामले में क्लीनचिट नहीं दिया जा सकता. उन्होंने कहा, “सरकार इस दंगा को रोकने में पूरी तरह से विफल रही और उसका दुष्परिणाम वहां की आम जनता को भोगना पड़ा. इसे न तो वहां के लोग भुला सकते हैं और न ही प्रदेश व देश की जनता ही. इसलिए सरकार को क्लीनचिट देते हुए सारा ठीकरा प्रशासनिक अधिकारियों पर फोड़ना उचित नहीं है. जस्टिस सहाय जैसे अच्छे व्यक्ति से ऐसी उम्मीद नहीं थी.”
पुनिया ने कहा, “सहाय अच्छे जज भी रहे हैं. अच्छे वकील भी रहे हैं. उम्मीद थी कि उनकी रिपोर्ट सही और निष्पक्ष होगी. लेकिन जो तथ्य सामने आएं हैं, वे आश्चर्यजनक हैं. प्रशासन पर दोष लगाते हुए जिस तरह के सवाल खड़े किए गए हैं, वे सवाल के घेरे में हैं. दंगे के बीच में डीएम और एसपी का ट्रांसफर करना उचित नहीं था.”
क्या है रिपोर्ट में?
मुजफ्फरनगर दंगे के लिए गठित जस्टिस विष्णु सहाय की 700 पन्नों की इस रिपोर्ट में अखिलेश सरकार को क्लीन चिट दी है. रिपोर्ट में कहा गया कि भड़काऊ भाषणों के लिए सीधे तौर पर कोई नेता जिम्मेदार नहीं है. ज्यादातर महापंचायत में लोलक इंटेलीजेंस यूनिट की असफलता है. जिसकी वजह से पंचायत में आने वाली भीड़ का सही आंकलन नहीं हो सका. इस रिपोर्ट में किसी भी नेता के भड़कऊं भाषाण को जिम्मेदार नहीं माना गया है बल्कि स्थानीय पंचायत और पुलिस को इस दंगे का जिम्मेदार बताया गया है. रिपोर्ट में बीजेपी विधायक संगीत सोम की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि संगीत सोम समेत 200 लोगों पर फेक वीडियो के मामले जांच चल रही है. सरकार की तरफ से इस पर अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है.
इस बीच दंगे में कुछ अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल खडे़ किए हैं, रिपोर्ट के मुताबिक तत्कालीन SSP सुभाषचंद्र दूबे और स्थानीय इंटेलीजेंस इंस्पेक्टर प्रबल प्रताप सिंह को सीधे तौर पर दंगों के लिए जिम्मेदार माना गया है. इसके साथ ही रिपोर्ट में तत्कालीन जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा की भूमिका को भी संदिग्ध माना गया है. आयोग ने दंगे भड़कने के 14 कारण गिनाए हैं. बीएपी और बीजेपी के नेताओं के बारे में इस रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि उनके खिलाफ दंगा भड़काने का मुकदमा दर्ज है, इसलिए आयोग उनके खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 20(2) के तहत सरकार को कोई कार्रवाई करने के लिए विधिक रूप से नहीं कह सकता.
क्या है मुजफ्फरनगर दंगा?
मुजफ्फरनगर में साल 2013 में बड़ा समुदायिक दंगा हुआ था. जिसमें 60 लोगों की मौत हो गई थी और 40,000 लोग बेघर हो गए थे. अभी भी मुजफ्फरनगर से बेघर हुए लोग शरणार्थी कैंप में रह रहे हैं. मुजफ्फरनगर को लेकर कुल 567 मुकदमे दर्ज किए गए हैं.