पिटारे में ऐसी चीजें मिलीं जो बताती हैं कि गुमनाम बाबा ही थे बोस

फैजाबाद. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के गुमनामी बाबा होने के दावे का मुद्दा एक बार फिर से गरमा चुका है. इसी बीच तीन दशक से जिला कोषागार में रखी गुमनामी बाबा की वस्तुएं खराब होने की आशंका भी गलत साबित हुई है. बाबा के 32 बक्से में से तीन बक्से 10 मेंबरों वाली एडमिनिस्ट्रेटिव कमेटी ने खोल दिए हैं. उनसे बरामद वस्तुएं तकरीबन सही हैं. इन बक्सों को बाबा की मौत के बाद यहां की ट्रेजरी में रखा गया था.
गुमनामी बाबा के ट्रेजरी में रखे सामान की जांच के बाद फिर से कयास लगाए जाने शुरू हो गए हैं कि वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ही थे.
क्या-क्या मिला गुमनामी बाबा के बक्सों में
इन बक्सों में से एक गोल फ्रेम वाला चश्मा और रोलेक्स घड़ी मिली जो बिल्कुल नेताजी के चश्मे और घड़ी की ही तरह थी. इन सामानों में एक यूनिफॉर्म भी मिली है, जो आजाद हिंद फौज की यूनिफॉर्म से मिलती है. इसके अलावा ट्रेजरी में भारत-चीन युद्ध पर लिखी किताबें, नेताजी की मौत की जांच के लिए बने खोसला और शाहनवाज कमीशन की रिपोर्ट, हाथ से बने नक्शे भी हैं. इन नक्शों में उस जगह का भी जिक्र है जहां नेताजी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी.
‘32 पिटारों में कुल 176 सामान’
डीएम योगेश्वर राम मिश्रा के मुताबिक, उनके 32 पिटारों में कुल 176 सामान हैं. इन सामानों में नेताजी के परिजनों के लिखे पत्र और उनसे संबंधित अखबारों की कटिंग, बांग्ला और अंग्रेजी साहित्य भी बरामद हुआ है.
कौन थे गुमनामी बाबा?
फैजाबाद जिले में एक योगी रहते थे. जिन्हें पहले भगवनजी और बाद में गुमनामी बाबा कहा जाने लगा. मुखर्जी कमीशन ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फैजाबाद के भगवनजी या गुमनामी बाबा और नेताजी सुभाष चंद्र बोस में काफी समानताएं थीं. 1945 से पहले नेताजी से मिल चुके लोगों ने गुमनामी बाबा से मिलने के बाद माना था कि वही नेताजी थे. दोनों का चेहरा काफी मिलता-जुलता था. रिपोर्ट में कहा गया है कि 23 जनवरी (नेताजी का जन्मदिन) और दुर्गा-पूजा के दिन कुछ फ्रीडम फाइटर, आजाद हिंद फौज के कुछ मेंबर और पॉलिटिशियन गुमनामी बाबा से मिलने आते थे.
नेताजी के परिवार ने दायर की थी याचिका
सामानों को पब्लिक करने के लिए नेताजी की भतीजी ललिता बोस और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मंच ने दो अलग-अलग रिट दायर की थी. इस पर सुनवाई करते हुए 31 जनवरी, 2013 को हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को ऑर्डर दिया था कि गुमनामी बाबा के सामानों को म्यूजियम में रखा जाए, ताकि आम लोग उन्हें देख सकें. इसके बाद यह प्रॉसेस शुरू हुई.
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