आर्थिक समीक्षा: GDP 7.75 फीसदी रहने की उम्मीद- जेटली

नई दिल्ली. आम बजट से तीन दिन पहले संसद में आज पेश आर्थिक समीक्षा में अगले वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि 7.00 से 7.75 प्रतिशत के दायरे में रहने की उम्मीद जताते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी सहित तमाम आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने, सब्सिडी कम करने और राजकोषीय अनुशासन के रास्ते पर बने रहने पर जोर दिया गया है.

इससे पहले पिछले साल की आर्थिक समीक्षा में 2015-16 में 8.1 से 8.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया था जबकि अग्रिम अनुमान में इसके 7.6 प्रतिशत रहने का आंकड़ा सामने आया है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015-16 की आर्थिक समीक्षा आज संसद में पेश की.

समीक्षा में कहा गया है कि ‘विश्वसनीयता और उम्मीद’ का तकाजा है कि अगले साल राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत पर ही रखा जाना चाहिए. सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों पर अमल के बाद सरकारी खचोर्ं में वृद्धि को देखते हुए कई वित्तीय एजेंसियों ने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में बदलाव की आशंका जताई है.

समीक्षा में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) को जल्द से जल्द अमल में लाने पर जोर दिया गया है. जीएसटी को समीक्षा में अप्रत्याशित सुधार उपाय बताया गया है. समीक्षा में अगले वित्त वर्ष के दौरान 7 से 7.75 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है जबकि चालू वित्त वर्ष 2015-16 में यह 7.6 प्रतिशत रह सकती है. वैश्विक आर्थिक परिदृश्य कमजोर रहने से इसमें कमी का जोखिम भी बताया गया है.

इसमें कहा गया है कि 8 से 10 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि हासिल करने में देश को दो-तीन साल लग सकते हैं. आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार भारत में इस दर से आर्थिक वृद्धि हासिल करने की क्षमता है. समीक्षा के अनुसार अगला वित्त वर्ष चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि सरकार को 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिये अतिरिक्त संसाधन आवंटित करने होंगे.

समीक्षा में अगले साल मुद्रास्फीति रिजर्व बैंक के लक्ष्य के अनुरूप 4.5 से 5 प्रतिशत के दायरे में रहने का अनुमान लगाया गया है जबकि चालू खाते का घाटा जीडीपी का 1 से 1.5 प्रतिशत दायरे में रह सकता है. निम्न मुद्रास्फीति से मूल्य स्थिरता को लेकर विश्वास बढ़ा है. कच्चे तेल के दाम .35 डालर प्रति बैरल के आसपास. नीचे रहने की संभावना से मुद्रास्फीतिक धारणायें कमजोर पड़ेंगी.

बजट से पहले जारी इस दस्तावेज में कर दायरा बढ़ाने पर जोर दिया गया है. इसमें कहा गया है कि कर दायरे को मौजूदा 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत तक पहुंचाया जाना चाहिए साथ ही कर रियायतों को समाप्त किया जाना चाहिए. समीक्षा में 8 से 10 प्रतिशत आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने के लिये तीन सूत्रीय एजेंडे पर चलने का सुझाव दिया गया है. इसमें कहा गया है कि बाजार-विरोधी नीतियों से हटना होगा, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना होगा और कृषि क्षेत्र में ज्यादा ध्यान देना होगा.

समीक्षा में कहा गया है कि रुपए की मजबूती से बचते हुए विनिमय दर उचित रहनी चाहिए जिसे मौद्रिक सरलीकरण के जरिये हासिल किया जा सकता है. देश में विदेशी पूंजीप्रवाह यदि कमजोर रहता है तो रुपये में धीरे-धीरे गिरावट आने देनी चाहिए. इसमें कहा गया है कि चीन की मुद्रा में अवमूल्यन को देखते हुये भारत को भी अपनी मुद्रा के समायोजन के लिये तैयार रहना चाहिए.

इसमें कहा गया है कि कुछ गैर-वित्तीय कंपनियों को बेचकर सरकारी क्षेत्र के बैंकों में पूंजी डाली जानी चाहिए. समीक्षा में बैंकों में 2018-19 तक 1.8 लाख करोड़ रुपये पूंजी डाले जाने की जरूरत बताई गई है. देश की अर्थव्यवस्था की आशावादी तस्वीर पेश करते हुये समीक्षा में कहा गया है कि धुंधले वैश्विक परिवेश में भारत आज भी आर्थिक स्थिरता और बेहतर संभावनाओं की भूमि बताया गया है.

समीक्षा के मुताबिक, ‘भारत की आर्थिक वृद्धि दुनिया में सबसे ऊंची है. जरूरी सार्वजनिक ढांचागत सुविधाओं के लिये सरकारी खचोर्ं को नये सिरे से तय करने से इसमें मदद मिली है.’ आने वाले समय में और अधिक मुश्किल वैश्विक परिवेश में भी आर्थिक वृद्धि की इस गति को बनाये रखना है.

कारोबार सगुमता के लिये अनेक कदम उठाये गये हैं. विभिन्न क्षेत्रों में एफडीआई नियमों को उदार बनाया गया है. कर निर्णयों में स्थिरता और विश्वसनीयता बहाल की गई है. विदेशी निवेशकों के न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट) मुद्दे के निपटाने में यह परिलक्षित हुआ है.

समीक्षा में जीएसटी क्रियान्वयन में हो रही देरी, विनिवेश लक्ष्य हासिल करने में असफलता पर निराशा जताई गई है. सरकार से सब्सिडी को तर्कसंगत बनाने का काम तेजी से आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है. फिलहाल यह काम ‘कार्य प्रगति पर है’ की तरह चल रहा है.

बैंकों और कंपनियों के बहीखाते दबाव में हैं इससे निजी क्षेत्र में निवेश फिर शुरू होने में यह आड़े आ रहा है. वैश्विक स्थिति को चुनौतीपूर्ण बताते हुये इसमें सलाह दी गई है कि आगामी बजट और आर्थिक नीतियां ऐसी होने चाहिए जो कि कमजोर वैश्विक परिवेश और असाधारण चुनौतियों का मुकाबला कर सके.

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