नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों के वसूल नहीं हो रहे कर्जे की राशि बढ़ने पर गहरी चिंता जताते हुए भारतीय रिजर्व बैंक को उन कंपनियों की सूची उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है, जिन पर 500 करोड़ रुपये से अधिक का बैंक कर्ज बकाया है और वे उसे नहीं चुका रही हैं.
शीर्ष अदालत ने आरबीआई से छह सप्ताह के भीतर ऐसी कंपनियों की सूची भी पेश करने को कहा है, जिनके कर्ज को कंपनी ऋण पुनर्गठन योजना के तहत पुनर्गठित किया गया है.
मुख्य न्यायधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिजर्व बैंक से कहा है कि बैंक कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनियों की पूरी सूची उसे सीलबंद लिफाफे में उपलब्ध कराई जाए. इस मामले में दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही इस पीठ में मुख्य न्यायधीश के अलावा न्यायमूर्ति यूयू ललित और आर भानुमति भी शामिल हैं.
पीठ ने जानना चाहा है कि बैंक और वित्तीय संस्थानों ने किस प्रकार से उचित दिशा-निर्देशों का पालन किए बिना इतनी बड़ी राशि कर्ज में दी और क्या इस राशि को वसूलने के लिए उपयुक्त प्रणाली बनी हुई है ?
कोर्ट ने साल 2005 में दायर जनहित याचिका में रिजर्व बैंक को भी पक्ष बनाया है. यह याचिका एक गैर-सरकारी संगठन ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) ने दायर की है. संगठन ने इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के आवास एवं शहरी विकास निगम (हुडको) की तरफ से कुछ कंपनियों को दिए गए कर्ज का मुद्दा उठाया है.
सीपीआईएल की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस मुद्दे पर कहा कि कंपनियों को दिया गया करीब 40,000 करोड़ रुपये का ऋण 2015 में बट्टे खाते में डाल दिया गया. प्रशांत भूषण की बात पर पीठ ने कहा कि कर्ज राशि फंसने की वजह से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हालत बिगड़ रही है.
पीठ ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि जिन लोगों ने कर्ज लेकर उसे नहीं लौटाया, उनसे वसूली के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा, आपके पास उन लोगों की सूची होगी जो कि बड़ा साम्राज्य चला रहे हैं, फिर भी कर्ज नहीं चुका रहे हैं. पीठ ने रिजर्व बैंक को आदेश देते समय एक राष्ट्रीय दैनिक में फंसे कर्ज यानी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) और इनकी वसूली में बैंकों की अक्षमता पर प्रकाशित रिपोर्ट पर भी गौर किया.
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