इशरत जहां एनकाउंटर: जानिए क्या था पूरा मामला

नई दिल्ली. इशरत जहां पर डेविड कोलमैन हेडली के खुलासे ने नया तूफान खड़ा कर दिया है. हेडली ने गुरुवार को अपनी गवाही में कहा कि इशरत लश्कर की आत्मघाती हमलावर है’. जो 15 जून 2014 को अपने साथियों के साथ पुलिस स्टेशनों को बम से उड़ाने के लिए निकली थी लेकिन अपने मकसद में वह नाकामयाब रही. कुछ समय बाद ही एनकाउंटर में इशरत जहां समेत जावेद उर्फ प्रणेश पिल्लई, अमजद अली राणा और जीशान जौहर भी मारे गए थे.
ऐसे हुआ था एनकाउंटर
इस ऑपरेशन में तीन राज्यों की पुलिस, खुफिया एजेंसी आईबी, एक पुलिस कमिश्नर, एक ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर, एक डीसीपी और दो एसीपी समेत पूरी पुलिस टीम शामिल थी. एनकाउंटर के वक़्त इशरत की उम्र महज़ 19 साल थी और वो मुंबई के मुंब्रा में गुरु नानक खालसा कॉलेज से बीएससी कर रही थी.
पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक 15 जून को अहमदाबाद के एंट्री प्वाइंट नारोल से नीले रंग की एक इंडिका कार गुजरी. एक खुफिया इनपुट के आधार पर तत्कालीन एसीपी एनके अमीन ने इस कार का पीछा करना शुरू कर दिया. अमीन को बताया गया था कि इस कार के अंदर चार आतंकवादी मौजूद हैं और ये लोग नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए आए हैं.
पुलिस की कहानी के मुताबिक कुछ देर तक उसका पीछा करने के बाद अमीन और उनके साथी अधिकारी ने फैसला लिया कि इस कार को अहमदाबाद तक पहुंचने देना ठीक नहीं होगा. इसके बाद रास्ते में पड़ने वाली अगली पुलिस चौकी को नाकेबंदी करने के आदेश जारी कर दिए गए. कोतरपुर इलाके में इस कार को रोकने की कोशिश की गई लेकिन कार में बैठे लोगों ने पुलिसवालों पर फायरिंग कर दी. जवाब में पुलिस टीम ने भी फायरिंग शुरू कर दी और इस फायरिंग में गाड़ी में बैठे चारों कथित आतंकी मारे गए.
पुलिस का दावा
एनकाउंटर के बाद पुलिस ने दावा किया था कि ये चारों उस समय गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी की हत्या करने आए थे और खुफिया एजेंसी के इनपुट के आधार पर इनका एनकाउंटर कर दिया गया.
इसके बाद गुजरात क्राइम ब्रांच ने अपनी चार्जशीट में दावा किया कि चारों लोग लश्कर के आतंकवादी थे. इशरत के अलावा मारे गए तीन लोगों में से जावेद शेख पर नकली नोटों की तस्करी करने का आरोप भी था. एक तीसरे शख्स अमजद अली राणा को पुलिस ने पाकिस्तानी नागरिक बताया, हालांकि जांच में वो इससे संबंधित कोई सबूत नहीं दे पाई. पुलिस ने चौथे शख्स जीशान जौहर को भी पाकिस्तानी नागरिक बताया था. हालांकि जीशान और अमज़द के शवों पर किसी ने कोई दावा नहीं किया.
बता दें कि एनकाउंटर के एक महीने बाद लश्कर के माउथपीस माने जाने वाले गजवा टाइम्स ने इशरत और उसके साथ मारे गये लोगों को मुजाहिदीन करार देते हुए, इशरत के शव को बिना पर्दा जमीन पर लिटाये जाने पर ऐतराज जताया था.
6 अगस्त 2009 को IB और गृह मंत्रालय ने इस मामले में अपना हलफनामा दायर किया. इन दोनों हलफनामों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि इशरत और जावेद करीबी दोस्त थे और साथ मिलकर लश्कर के लिए काम कर रहे थे. आईबी का दावा है कि जावेद मार्च 2004 में ओमान जाकर लश्कर के कमांडर मुजम्मिल से भी मिला था. जावेद और इशरत पति-पत्नी बनकर एनकाउंटर से पहले अहमदाबाद, लखनऊ और फैजाबाद जिले के इब्राहिमपुर में होटलों में जाकर रुके थे.
बता दें कि इशरत की मां शमीमा कौसर ने पूरी कहानी को झूठा बताते हुए पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग कर दी. यहीं से पूरे मामले ने नया मोड़ लेना शुरू किया और केंद्र सरकार को दूसरा हलफनामा दाखिल करना पड़ा. ये हलफनामा आरवीएस मणि के ज़रिए 29 सितंबर, 2009 को दाखिल करवाया गया. इसमें कहा गया कि केंद्र सरकार को इस मामले मे सीबीआई जांच से कोई परहेज़ नहीं है और आतंकियों के बारे में खुफिया सूचना देने का मतलब ये नहीं कि गुजरात पुलिस उसी को आधार बनाकर सबको मार डाले.
मजिस्ट्रेट एसपी तमांग की जांच रिपोर्ट
अहमदाबाद के न्यायिक मजिस्ट्रेट एसपी तमांग की जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद शुरू हुआ. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इशरत के एनकाउंटर को फर्जी करार दिया और आरोप लगाया कि इसमे शामिल पुलिस अधिकारियों ने शोहरत और प्रमोशन के लिए ठंडे कलेजे से इन चारों की हत्या की है. यहीं से इशरत मामले में नए-नए बदलाव आने शुरू हो गए.
गुजरात हाईकोर्ट के निर्देश पर गठित CISF के तत्कालीन एडिशनल डीजीपी आरआर वर्मा की अगुआई वाली SIT ने साल 2011 में इशरत एनकाउंटर को फर्जी ठहरा दिया. SIT ने कहा कि इशरत के आलावा बाकी तीन लोगों पर अपराधिक मामले दर्ज थे लेकिन इशरत का बिना किसी मज़बूत आधारों के एनकाउंटर कर दिया गया.
SIT की रिपोर्ट के आधार पर ही हाईकोर्ट ने पूरे केस की CBI जांच के आदेश भी दे दिए. कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने 16 दिसंबर 2011 को मामले में पहली FIR दर्ज की.इस एनकाउंटर के नौ साल बाद सीबीआई ने 3 जून 2013 को पहली चार्जशीट दायर की और मुठभेड़ को फर्जी करार दिया.
IB, CBI और NIA शक के दायरे में
इस केस में गुजरात के एडीजीपी पीपी पांडे, पूर्व डीआइजी डीजी वंजारा, आइपीएस जीएल सिंघल समेत तरुण बारोट, एनके अमीन, जेजी परमार और अनाजू चौधरी को आरोपी बनाया गया. इस केस में अमित शाह को भी नोटिस जारी किया गया था.
बता दें कि उन्हें बाद में क्लीन चिट दे दी गई. 2010 में जब ये खबर लीक हुई कि लश्कर आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने NIA की पूछताछ में इशरत को भी लश्कर आतंकी बताया तो फिर बवाल खड़ा हो गया. IB, CBI और NIA आपस में ही एक दूसरे से उलझ गए. IB को जब इस मामले में अपने सीनियर ऑफिसर राजेंद्र कुमार फंसते दिखे तो वो उन्हें बचाने के लिए होम मिनिस्ट्री तक पहुंच गई.
डीजी वंजारा 2005 में हुए सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर में मुख्य आरोपी हैं जबकि जेजी परमार और तरुण बरोट भी सादिक जमाल फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपी हैं. इशरत मामले में आरोपी एडीजीपी पीपी पांडे भी गिरफ्तार हो चुके हैं बाद में वह फरार हो गए थे. जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट में अग्रिम ज़मानत याचिका भी दायर की थी लेकिन फैसला उनके खिलाफ रहा.
बता दें कि इशरत को लेकर हेडली के खुलासे पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. भारत की तीन एजेंसियों के बीच जारी उठापटक में हेडली को NIA और IB का मोहरा माना जा रहा है. उधर पाकिस्तान ने भी आरोप लगाया है कि भारत हेडली का इस्तेमाल अपने फायदों के लिए कर रहा है. फिलहाल हेडली के खुलासों पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हो गईं हैं.
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