समलैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करने वाली आईपीसी की धारा 377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि समलैंगिक संबंध अपराध है कि नहीं.
नई दिल्ली. समलैंगिक संबंधों को अपराध घोषित करने वाली आईपीसी की धारा 377 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि समलैंगिक संबंध अपराध है कि नहीं.
क्यूरेटिव पिटीशन पर सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की पीठ को सुनवाई करनी थी लेकिन अब इस मामले की सुनवाई पांच जजों की बड़ी बेंच करेगी.
एलजीबीटी कार्यकर्ताओं ने सेक्शन 377 पर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को सही दिशा में प्रगतिशील कदम बताया है.
क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई
चीफ जस्टिस टी.एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ सुप्रीम कोर्ट के 11 दिसंबर, 2013 के फैसले के खिलाफ समलैंगिक अधिकारों के लिए प्रयत्नशील कार्यकर्ताओं और गैर सरकारी संगठन नाज फाउंडेशन की क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई के लिए सहमत हुई थी.
कोर्ट ने इस फैसले में अप्राकृतिक यौन अपराधों से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 377 की वैधता बरकरार रखी थी. न्यायालय ने इसके बाद जनवरी, 2014 में इस निर्णय पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाए भी खारिज कर दी थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा था हाईकोर्ट का फैसला
इस मामले में 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला दिया था. लेकिन फैसले को केंद्र सरकार ने चुनौती दी और सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2013 में हाईकोर्ट के आदेश को पलटते हुए समलैंगिकता को IPC की धारा 377 के तहत अपराध बरकरार रखा. दो जजों की बेंच ने इस फैसले पर दाखिल पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी.
आठ याचिकाओं पर सुनवाई
मामले में नाज फाउंडेशन, श्याम बेनेगल और समलैंगिकों के संगठन की आठ याचिकाएं दाखिल हैं. वैसे 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए ट्रांसजेंडर को तीसरी केटेगरी में शामिल कर उन्हें ओबीसी केटेगरी में आरक्षण और दूसरी सुविधाएं देने के आदेश दिए थे. हालांकि बेंच ने समलैंगिकता के आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं की थी.