नई दिल्ली. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने साल 2017 में सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों से कहा था कि वे अपने यहां काम कर रहे शिक्षकों की जानकारी देते हुए उनका आधार नंबर कार्ड नंबर भी जरूर उपलब्ध कराएं. लाइव मिंट की खबर के मुताबिक़ मंत्रालय के इस फैसले के बाद पता चला कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत बताए गए 1,30,000 शिक्षक दरअसल वास्तव में हैं ही नहीं. इस प्रक्रिया से खुलासा हुआ है कि शिक्षकों की कमी उम्मीद से कहीं ज़्यादा है. गौरतलब है कि फिलहाल देश में सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में लगभग 14 लाख के क़रीब शिक्षकों की संख्या बताई जाती है. लेकिन आधार से पहचान की अनिवार्यता के बाद इस संख्या में 10% की गिरावत सामने आई. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक सूत्र ने शिक्षकों के इस आंकड़े की पुष्टी की है.
नाम न बताने की शर्त के साथ मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि ‘अब भी कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी ऐसे हैं जिन्होंने अपने यहां कार्यरत शिक्षकों की जानकारी उनके आधार नंबर सहित उपलब्ध नहीं कराई है. ऐसे में संभावना है कि अभी ‘फर्जी शिक्षकों’ का आंकड़ा और बढ़ सकता है. हालांकि इससे यह साफ हो गया है कि तमाम संस्थान विस्तार और नए कोर्स शुरू करने के मक़सद से ज़रूरी नियामक मंज़ूरियां हासिल करने के लिए कार्यरत शिक्षकों का ग़लत आंकड़ा पेश कर रहे हैं.’ बता दें कि इससे पहले मिड डे मील योजना में भी ऐसी ही गड़बड़ी सामने आई थी. उस समय खुलासा हुआ था कि करीब 4.4 लाख छात्र-छात्रओं का पंजीयन फर्जी है.
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