नई दिल्ली. अनुसूचित जाति-जनजाति एवं ओबीसी के लिए विश्वविद्यालयों की नौकरियों में आरक्षण लागू करने के नए तरीके 13 प्वॉइंट रोस्टर का जमकर विरोध हो रहा है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय और यूजीसी द्वारा दायर स्पेशल लीव पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी को खारिज कर दिया, जिसके बाद सभी विश्वविद्यालयों में 13 प्वॉइंट रोस्टर लागू हो गया है और अप्रैल 2014 से रुकी हुई नियुक्तियां इसी सिस्टम के तहत होंगी. लेकिन इसके खिलाफ दिल्ली यूनिवर्सिटी और लखनऊ यूनिवर्सिटी में विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया है.
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने: यूजीसी के आरक्षण से जुड़े मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया. 5 मार्च 2018 को आए यूजीसी के फैसले को हाई कोर्ट ने सही ठहराया. नियुक्तियों में आरक्षण को लेकर यूजीसी ने दो अहम बदलाव किए हैं. पहला ये कि 200 प्वॉइंट वाले रोस्टर सिस्टम की जगह 13 प्वॉइंट रोस्टर वाला रिजर्वेशन सिस्टम लागू किया गया है.
दूसरा ये कि जो आरक्षण पहले यूनिवर्सिटी लेवल पर मिलता था, वह अब डिपार्टमेंट या विभाग के स्तर पर मिलेगा. 2017 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यूनिवर्सिटी में शिक्षकों की नियुक्ति का आधार कॉलेज या विश्वविद्यालय नहीं बल्कि विभाग होगा. इसके बाद यूजीसी ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया कि हाई कोर्ट का फैसला तुरंत लागू करें.
13 प्वॉइंट रोस्टर पर बवाल क्यों: अब तक कॉलेजों या यूनिवर्सिटी को एक ही यूनिट माना जाता था. इनमें भर्तियों के लिए 200 प्वॉइंट रोस्टर सिस्टम लागू था. लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि विभाग के जरिए आरक्षण लागू किया जाए. इसके लिए 13 प्वॉइंट रोस्टर सिस्टम लाया गया है. इसका मतलब है कि यूनिवर्सिटी में जो नौकरियां निकलेंगी, उसमें पहले तीन पद जनरल, चौथा ओबीसी, पांचवा व छठा जनरल, 7वां पद अनुसूचित जनजाति, 8वां ओबीसी, 9वां, 10वां और 11वां जनरल, 12वां ओबीसी, 13वां जनरल और 14वां पद अनुसूचित जनजाति को दिया जाएगा. विशेषज्ञों का कहना है कि इस सिस्टम से सिर्फ 30 प्रतिशत लोगों को ही रिजर्वेशन का फायदा मिलेगा. जबकि संविधान में एससी-एसटी और ओबीसी के लिए 49.5 प्रतिशत रिजर्वेशन का प्रावधान है.
विरोध क्यों है? जानकारों का मानना है कि इस सिस्टम के तहत कभी भी एससी-एसटी और ओबीसी को 49.5 प्रतिशत रिजर्वेशन नहीं दिया जा सकता. वह इसलिए क्योंकि हाई कोर्ट के आदेश के तहत विभाग को इकाई माना गया है और किसी विभाग में एक साथ 13 नौकरियां निकलें, ऐसा कम होता है. यानी ओबीसी को चार, एससी को 7 और एसटी को 14 नौकरियां निकलने का इंतजार करना होगा. देश की बड़ी यूनिवर्सिटीज में कई विभाग ऐसे हैं, जिनमें दो या तीन प्रोफेसर ही हैं. ऐसे में वहां आरक्षण के तहत एसटी-एससी और ओबीसी वर्ग को नौकरी नहीं मिल सकती. इसमें बैकलॉग का प्रावधान भी नहीं है तो नौकरी भी सामान्य वर्ग को ही मिलेगी.
डीयू में खलबली क्यों? दिल्ली यूनिवर्सिटी और उससे संबंधित कॉलेजों में आरक्षित वर्ग के 2000 असिस्टेंट प्रोफेसर पढ़ा रहे हैं. इनकी अस्थायी नियुक्तियां (एड-हॉक) हुई थीं, जो हर 4 महीने पर होती हैं. अब 13 प्वॉइंट रोस्टर के तहत नियुक्तियों में रिजर्वेशन के नए नियम लागू होंगे और नए सिरे से भर्तियां की जाएंगी. ऐसे में ज्यादातर की नौकरियां जाने का खतरा मंडरा रहा है.
मोदी सरकार ने क्या किया: 13 प्वॉइंट रोस्टर का विरोध होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में नरेंद्र मोदी सरकार ने स्पेशल लीव पीटिशन दायर की लेकिन कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया, जिसके बाद 13 प्वॉइंट रोस्टर लागू हो गया. इस दौरान एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर ने अध्यादेश लाकर इस फैसले को पलटने की बात कई बार कही लेकिन अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ. सरकार के पास विकल्प है कि वह अध्यादेश या बिल लाकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को पलट दे. वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी लगा सकती है.
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