किसान मरता रहा… केजरीवाल भाषण देते रहे

नई दिल्ली. क्या आप जानते हैं गजेंद्र ने दिल्ली सरकार के सामने प्रधानमंत्री आवास से महज कुछ किमी. की दूरी पर, इस देश की संसद के करीब ही मौत की जगह क्यों चुनी ? सब कह रहे हैं कि गजेंद्र हालात का मारा था, बर्बाद फसलों से तबाह किसान था. ऐसा बिल्कुल नहीं है. गजेंद्र ने अपनी शहादत दी है, देश के उन 65 फीसदी किसानों के लिए, जो रोज इसी तरह कहीं पेड़ पर, कहीं खेत के बीचोंबीच, कहीं घर के बंद कमरे में मौत को गले लगाने को मजबूर हैं. आज संसद से सड़क तक बहस छिड़ी है कि गजेंद्र की मौत की वजह क्या थी ?लेकिन गजेंद्र की शहादत के बाद भी किसी दल को, सरकार को ये समझ में नहीं आ रहा है कि गजेंद्र दरअसल किसानों को वोट बैंक समझने वालों को आइना दिखा गया है. लिहाजा बड़ी बहस में ये सवाल जितना बड़ा है कि गजेंद्र की मौत का जिम्मेदार कौन है, उतना ही बड़ा सवाल ये भी है कि कोई भी किसान खुदकुशी करने पर मजबूर क्यों हो जाता है ? कौन है 1995 से अब तक मौत को गले लगाने वाले तीन लाख किसानों का गुनहगार ?

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